दर्शन प्रतिमा क्या होती है?

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शंका

पहली प्रतिमा का स्वरूप बताने की कृपा करें?

समाधान

श्रावकाचार के क्रमोन्नत विकास को प्रतिमा कहते हैं और ये प्रतिमाएं एक से लेकर ग्यारह तक होती हैं। 

सबसे पहली दर्शन प्रतिमा है। दर्शन प्रतिमा का मतलब है कि संसार, शरीर, और भोगों से थोड़ा उदासीन हो जाएं। पंच परमेष्ठी के चरणों में जो समर्पित हो, देव, शास्त्र, गुरु की जो भक्ति करता हो, वह दर्शन प्रतिमा का धारी होता है। 

पहली प्रतिमा के आचार के अनुसार, दर्शन प्रतिमाधारी रात्री में चारों प्रकार के आहार का त्याग रखें, दिन में अशुद्ध भोजन न करें, छने पानी का नियम लें। छने पानी के कारण जो भी अनछनी चीजें है, वो नहीं ले सकते। 

पहले प्रतिमा में पूरी तरह सोला नहीं, आंशिक सोला चलता है। कूप जल का प्रयोग नहीं कर सकें तो कोई बात नहीं, पर आप शुद्ध जल का प्रयोग कर सकते हैं। बाजार की कोई भी तरल औषधि आदि को नहीं ले सकते। चलते-फिरते हुए किसी भी चीजों को आप खा-पी नहीं सकते। शुद्ध भोजन करना, सात्विक जीवन जीना। अनेक दिन के पुराने अचार पापड़ आदि का प्रयोग नहीं कर सकते। ये पहली प्रतिमा के लिये आवश्यक नियम है।

साथ में पाँच पापों का स्थूल रूप से त्याग एवं मद्य, माँस और मधु (शहद) का प्रतिज्ञा पूर्वक त्याग करके पाँच अणुव्रतों का स्थूल अभ्यास करना चाहिए। इन नियमों का पालन करने पर दर्शन प्रतिमा होती हैं।

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