शरीर में बीमारी और स्वास्थ्य लाभ किस कारण होता है?

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शंका

शरीर में व्याधि किस कर्म के उदय से होती है और स्वास्थ्य का लाभ किस पुण्य के उदय से होता है?

समाधान

शरीर की व्याधि उत्पन्न होने में असाता-वेदनी कर्म कारण है और शरीर नाम-कर्म के साथ-साथ स्थिर नाम-कर्म में विकृति भी एक कारण है। लेकिन ये तो कर्म हैं, ऐसे कर्म कब बनते हैं? जो व्यक्ति दूसरे को ज़्यादा सताता है, पीड़ित करता है, किसी का शोषण करता है, अन्याय करता है, वंचना बाहुल्य-प्रवृत्ति करता है, ठगता है वो व्यक्ति रूग्ण शरीर का स्वामी होता है, अक्सर बीमार रहता है। तो आज आप चाहते हो कि मैं आगामी जीवन में स्वस्थ रहूं तो कभी किसी के अस्वस्थता का निमित्त न बनें। शरीर से, मन से- दोनों स्तर पर आप किसी भी रूप में अपने आपको व किसी अस्वस्थ व्यक्ति को परेशान न करें। जहाँ तक बने आप दूसरों का पोषण करें, शोषण न करें। जो दूसरों का शोषण करते हैं वो खुद का पोषण नहीं कर पाते हैं। इस बात को ध्यान में रखकर के चलें। 

अब रहा सवाल निरोगी काया कैसे पाई जाए? समन्तभद्र महाराज ने ऐसा लिखा है कि मुनियों की सेवा, वैयावृत्ति करने वाला व्यक्ति सुंदर रूपवान, दीर्घ आयु वाला और स्वस्थ शरीर का स्वामी होता है। इसी प्रकार अन्य दीन की सेवा करने वाला व्यक्ति ऐसे पुण्य का संचय करता है जिससे उसके स्वस्थ शरीर का लाभ होता है, तो आप अपना स्वास्थ्य बनाए रखना चाहते हैं तो दूसरों के स्वास्थ्य का ख्याल रखो और दूसरों के स्वास्थ्य को ठीक बनाए रखने में यथा सम्भव निमित्त बनो।

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