फल-सब्जी खाने में जीव हत्या होती ही है, फिर जैन इन्हे क्यों खाते हैं?

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शंका

हम जो भी फल, सब्जी, भाजी आदि खाते हैं उन सब में जीव हत्या तो होती ही है। तो हम जैन इन्हें क्यों खाते हैं? जबकि जैन धर्म का मूल तो “अहिंसा परमो धर्म” है।

समाधान

एक भाई ने मुझसे ऐसे ही पूछा था कि ‘सब्ज़ी में भी जीव हैं और प्राणी में भी जीव हैं तो हम साग-सब्जी खायें या माँस खायें बराबर है क्योंकि जीव तो दोनों हैं। फिर शाकाहार की दुहाई क्यों?’ मैंने उस दिन जो जबाब दिया वह आज के इस सन्दर्भ में फिर दोहराना चाहता हूँ। मैंने उससे कहा कि ‘पेड़ से एक पत्ता टूट कर गिरता है, तो उसी जगह दूसरा पत्ता उग आता है, और यदि किसी का कान कट के गिर जाये तो दोबारा उगता है क्या?’ तो प्राणी और वनस्पति में अन्तर है। शरीर के संचालन के लिए भोजन की आवश्यकता है, और उसके बिना हमारा शरीर चल नहीं सकता है। इसलिए हमें लेना पड़ता है- शक्यानुष्ठान। पर इसके लिए हमारे यहाँ ये विधान किया गया कि वनस्पति का सेवन करें, क्योंकि उनकी आयु उतनी ही होती है। प्रकृति ने उसे इसीलिए तैयार किया है और वह हमारी प्रकृति के अनुकूल भी है। माँस आदि हमारी प्रकृति के अनुकूल नहीं हैं इसलिए दोनों को एक मानना कतई उचित नहीं है। पेड़ से साग-सब्जी तोड़ लेने के बाद भी पेड़ जिंदा रहता है पर किसी प्राणी का माँस निकालने के बाद उसका जीवित रहना सम्भव नहीं है। इसलिए हमारा सिद्धान्त है, जियो और जीने दो

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