जीवन पर ‘नाम’ का प्रभाव!

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शंका

नामकरण संस्कार, कुंडलियाँ, राशिफल आदि का मनोवैज्ञानिक प्रभाव क्या होता है? इस दुनिया में और भी देश हैं,  वहाँ पर यह सब चीजें शायद नहीं होती हैं, भारत में और भारतीय मान्यताओं में सब चीजें होती हैं तो इन का मनोवैज्ञानिक समीकरण क्या है?

समाधान

नामकरण और कुंडली, कुंडली की तो ज्योतिष से व्यवस्था है और नामकरण के लिए हमारे शास्त्रों में भी महत्त्व दिया है कि नाम का व्यक्ति के गुणों पर असर होता है। लेकिन मेरा अपना अनुभव बताता है, नाम और काम दोनों समान नहीं होते। व्यक्ति के अन्दर लगन-निष्ठा हो तो नाम कुछ भी हो, वह बहुत आगे बढ़ सकता है। इसलिए मैं इस पर बहुत ज़्यादा विश्वास नहीं करता। नाम यथासम्भव अच्छे नाम होने चाहिए, ऐसे नाम जिससे उसका अर्थ प्रकट हो लेकिन ऐसा नहीं सोचना चाहिए कि यदि किसी का नाम अच्छा हो गया तो आदमी भी अच्छा हो। 

नाम बड़े और दर्शन छोटे, बुंदेलखंड में एक कहावत सुनी -एक आदमी का नाम था ठन ठन पाल। उसको बड़ा बुरा लगता था- ‘मेरा नाम खराब है’, तो सोचा, चलो नाम बदल लूँ!, ढूंढ़ने निकला तो देखा एक महिला थी जो अपने शरीर पर जो साड़ी पहनी हुई थी उस में २० जगह पर पैबंद लगा हुआ था, वह कंडे बीन रही थी। उससे पूछा कि ‘बहन जी आपका नाम क्या है?’, उसने कहा- लक्ष्मी। उसे बड़ा आश्चर्य हुआ, लक्ष्मी और कंडा बीन रही है। उससे आगे बढ़ा, देखा एक आदमी हल चला रहा था और उसके तन पर आधी धोती थी, पूरा नंगे बदन पसीना-पसीना, हल चला रहा था। उसे पूछा भाई साहब आपका नाम क्या है जवाब दिया- धनपाल। धनपाल और इतने फटे हाल! आगे बढ़ा एक शव यात्रा जा रही थी, पूछा – ‘कौन मर गए?’ कहा- अमर सिंह मर गए। उसने कहा 

“लक्ष्मी कंडा बीनती, हल हाकें धनपाल और अमर सिंह जी मर गए हम नौने ठन ठन पाल।”

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