हर धर्म में स्वस्तिक का बड़ा ही महत्त्व है। जब हम कोई भी शुभ काम करते हैं, तो स्वस्तिक बनाते हैं, पूजा में भी स्वस्तिक बनाते हैं। गुरुदेव, स्वस्तिक के कितने प्रकार हैं और नंद्यावृत में स्वस्तिक का क्या महत्त्व है? क्या हम चाँदी का स्वस्तिक बनाकर अपने घर में स्थापित कर सकते हैं? मैंने सुना है इसे रखने से लाभ होता है। गुरुदेव, हमारा मार्गदर्शन करें।
देखिये, स्वस्तिक एक माँगलिक प्रतीक है और स्वस्तिक शब्द स्वस्ति में क लगकर बनाया गया है। इसमें स्वस्ति का मतलब होता है कल्याण और क मतलब कारक। जो कल्याणकारक माँगलिक प्रतीक है, उसे स्वस्तिक कहा जाता है। जो कल्याण करने वाला है, जगत का मंगल करने वाला है, वह स्वस्तिक है। भारतीय परम्परा में स्वस्तिक का पुरातन काल से प्रयोग होता रहा है और ऐसा कहा जाता है कि अगर हम कहीं स्वस्तिक का अंकन कर दें, तो उसे देखने से, उस पर दृष्टि जाने से नकरात्मकता हावी नहीं होती। हमारे यहाँ सभी शुभ कार्यों में स्वस्तिक का अंकन किया जाता है। हमारे सम्मेद शिखर के मूल में भी स्वस्तिक अंकित है, ऐसा कहा जाता है। तो यह स्वस्तिक एक बड़ा माँगलिक प्रतीक है। इसी स्वस्तिक को जर्मनी के राष्ट्रीय ध्वज के चिन्ह के रूप में भी जाना जाता है। इसे दूसरे लोग पीस क्रॉस के रूप में भी मानते हैं।
आध्यात्मिक दृष्टि से स्वस्तिक की चार भुजाएँ, चारो गतियों का प्रतीक हैं। और ऊपर रहने वाला चंद्र बिन्दु सिद्धालय का। स्वस्तिक हम चार गति से पार होकर सिद्धालय जाने की प्रेरणा से भी बनाते हैं। तो यह स्वस्तिक के साथ जुड़ा हुआ मनोभाव है। इस पर अनेक प्रयोग हुए। स्वस्तिक के लगभग सत्ताधिक रूप है। मेरे पास एक पुस्तक आई थी, उसमे विभिन्न प्रकार की स्वस्तिक की जो संरचना की जाती है, उन सबका रूप उसमें दिया हुआ था। नंद्यावृत स्वस्तिक विशेष स्वस्तिक के रूप में जाना जाता है। यह भी एक स्वस्तिक का रूप है, इसे आप रख सकते है। कोई भी स्वस्तिक आप रख सकते है। घर में रख सकते है, बल्कि रखना ही चाहिए। प्रत्येक घर में अष्ट मंगल होना चाहिए, इसमें स्वस्तिक भी है। अगर यह माँगलिक प्रतीक रखते हैं, तो यह आपके घर की सकारत्मकता की वृद्धि में कारण बनते हैं।
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