कभी कभी लंबी साधना और तपस्या के बाद भी समाधिमरण क्यों नहीं हो पाता?

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शंका

कभी कभी लंबी साधना और तपस्या के बाद भी समाधिमरण क्यों नहीं हो पाता?

समाधान

अच्छी चीज़ों का लाभ बड़े पुण्य से मिलता है। आपने सही कहा जीवन भर साधना करने के बाद भी अन्त सल्लेखना-पूर्वक हो, यह बहुत दुर्लभ है। श्रुत केवलियों के लिये तक इतना कहा गया है कि अन्त में वे सल्लेखना पूर्वक जायें ऐसा बहुत दुर्लभ है। यह अनेक जन्मों की साधना, आराधना और पुण्य उदय से होता है। रहा सवाल ऐसा किस कर्म के उदय से होता है? शास्त्र की भाषा में कहूँ, तो यह चारित्र मोहनी कर्म के तीव्र उदय में होता है ऐसा समझना चाहिए।

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