बिना गुरु आज्ञा के मन्त्र जपना चाहिए?

150 150 admin
शंका

मन्त्र का उच्चारण और मन्त्र साधक है या साधन है? और क्या मन्त्र वही उपयोग में लेना चाहिए, जो गुरुवर द्वारा दिए गए हो या किताब पढ़कर उपयोग कर ले?

समाधान

मन्त्र साध्य नहीं है, मन्त्र साधन है। और मन्त्र का कोई भी प्रयोग बिना गुरु की आज्ञा के नहीं करना। केवल एक जो मन्त्र ऐसा है जिससे आप खुद प्रयोग में ले सकते हो, वह है परमेष्ठी। आचार्य ने लिखा है ३५ अक्षर का णमोकार मन्त्र से लेकर एकाक्षरी तक परमेष्ठी वाचक मन्त्र है, इसको तो आप कैसे भी जप सकते हो, समझ गए। लेकिन अन्य और जो कोई मन्त्र हो, बिना गुरु के उपदेश के नहीं जपना। अन्यथा मन्त्र का दुष्प्रभाव पड़ता है। 

मन्त्र का दुष्प्रभाव क्या पड़ता है, मैं बताता हूँ। एक मुनि महाराज थे, नाम उनका नहीं बताता, पर अर्ध विक्षिप्त स्थिति, ओम ओम ओम का बहुत ऊँचा नाद और एकदम समझ लो की स्थिति भयंकर। एक गाँव में चले गए तो वहाँ आहार को निकले तो १०८ चक्कर के पहले विधि न मिले। जितनी देर आहार ले उतनी देर कैमरा चमकते रहना चाहिए। भोजन ले ले तो केवल मिर्ची खा रहे, हरी मिर्ची और चिल्ला दे तो सामने वाला काँप जाए। पर एक दो तो वाक सिद्धि ऐसे की बोलते तो हो जाए तो अजैन भगत बन गए जैनी तो दूर। अब उनकी यह स्तिथि कैसे हुई? वह जिनेन्द्र वर्णी से जुड़े हुए ब्रह्मचारी थे, बाद में एक महाराज से दीक्षा ली। अच्छे ब्रह्मचारी और जिनेन्द्र वर्णी तो अच्छे साधक थे, विद्वान् भी थे, उनके सम्पर्क में रहने वाले व्यक्ति मुनि बने। बाद में मालूम पड़ा कि उन्होंने मन्त्र सिद्धि कि, बिना गुरु की आज्ञा के। उस मन्त्र का दुष्प्रभाव हुआ की वे विक्षिप्त हो गए। तो मुनि महाराज भी गुरु की आज्ञा के बिना मन्त्र का अगर प्रयोग करते हैं, तो विक्षिप्त हो जाते हैं। और एक और महाराज को मैं जानता हूँ आज वह इस दुनिया में ही नहीं रह पाए। उन्होंने भी मन्त्र की सिद्धि की, गुरु के मना करने के बाद भी सिद्दी की, और वो आज टिक नहीं पाए। तो मन्त्र का प्रयोग केवल किताब पढ़ कर के करना ठीक नहीं है, गुरु से मार्गदर्शन लेकर हीं करना चाहिए।

Share

Leave a Reply