क्या हमें मैच खेलकूद देखने चाहिए?

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शंका

क्या हमें मैच खेलकूद देखने चाहिए?

समाधान

मैच देखना हो तो देखो, लेकिन मैच के पीछे पागल मत हो। limit में देखो और मैच को खेल की भावना से देखो। समझ गयें? मैच में जो तुम्हारे भीतर उथल-पुथल होती है बहुत गड़बड़ होती है। 

मैं एक जगह था। वर्ल्ड कप चल रहा था। भारत-पाकिस्तान का मैच था। शायद सेमीफाइनल था बेंगलुरु में। बहुत पहले की बात है। एक बच्चा मेरे पास आया। बहुत मासूमियत से उसने कहा “महाराज जी,आप सामायिक कर रहें हो ना, आप एक ऐसा कोई माला फेरो जिससे इंडिया जीत जायें।”  मैंने कहा “बेटे, खेल खेल है। कोई एक जीतेगा, चाहे भारत जीते चाहे पाकिस्तान जीते। खेल का मजा कब जब दोनों जीत जाए। टाई मैच में मजा होता है क्या? एक की जीत तो एक की हार तो होनी है। इसलिए सोचो मत। खेल को खेल की भावना से देखो। हाँ, जो बस जिस देश में रहते हैं उस देश के प्रति थोड़ा झुकाव होता है। लेकिन वह झुकाव एक सीमा से बाहर नहीं होना चाहिए। उसमें ज्यादा झुकाव रखना पागलपन है और कभी-कभी तो ऐसा पागलपन छाता है, जो घटनाएं प्रकाश में आती है लोग टीवी तक फोड़ देते हैं। और कई बार खुशी भी नहीं पचा पातें और तकलीफ भी नहीं पचा पातें। 

और एक बात, आजकल के खेल तो बड़े बदनाम हो गए। यह पैसों का खेल हो गया। फिक्सिंग वाला काम हो गया या फिर पूरा व्यापार हो गया है। इसलिए ऐसे खेलों में ज्यादा समय मत गवाओ। खासकर मैं क्रिकेट के लिए कहता हूँ। क्रिकेट गुलामों के देश में फैला हुआ खेल है। जिसे ब्रिटिशों ने शुरू किया था। अंग्रेजों ने गुलामों के साथ यह खेलना शुरू किया। बल्ला गाड़ दिए, कि तुम गेंद फेंको हम बैट चलाएंगे। तो जहाँ ब्रिटिश उपनिवेश थे वही यह खेल विकसित हुए। पाँच-पाँच दिन तक टाइम बर्बाद करो और खेलों। यह मूर्खों का खेल है समझदारों का नहीं। पर दुर्भाग्य है कि भारत में ऐसे मूर्खों की संख्या बढ़ती जा रही है। और मीडिया ने इसे इतना हाई-लाइट कर दिया कि क्रिकेट के नाम पर जुनून छाता है। 

पागलपन है! क्या होगा इससे? और खेल करके अगर कोई जीत भी गया तो ऐसा लगता है जैसे युद्ध जीत लिया। मीडिया ने इसे बहुत हाई-लाइट कर दिया। खेल ऐसे हो जो घंटे डेढ़ घंटे में जिसका फैसला हो जाए। दुनिया के जितने विकसित देश है वहाँ ऐसा खेल होता है क्या? अमेरिका में होता है? रूस में होता है? जापान में होता है क्या क्रिकेट जैसा खेल? यह सब नहीं है वहाँ। यह तो वो लोग है जिनके देश में ठलवे लोग ज्यादा थे तो ऐसा खेल विकसित हो गया। और मीडिया ने  इसको हाइलाइट कर दिया। तो जरूरत से ज्यादा किसी के पीछे पागल होना ठीक बात नहीं है। उनको खेलने दो तुम अपना काम अपने तरीके से करो।

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