क्या मनोकामना पूर्ति की इच्छा से धर्म ध्यान करना चाहिये?

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शंका

आजकल चमत्कार को नमस्कार किया जाता है, बड़े-बड़े मन्दिरों में पूजा-अर्चना मनोकामना से की जाती है। यदि कोई भगवान से प्रार्थना करता है कि मेरा काम बन जाएगा तो यह कर दूँगा; मेरा काम बन जाए तो वह कर दूँगा- क्या यह सही है?

समाधान

ऐसा जो भी लोग करते हैं वे भगवान की भक्ति नहीं करते, भगवान से सौदा करते हैं। भगवान के पास व्यापारी बनकर जाओगे या भिखारी बनकर जाओगे तो कुछ भी नहीं पाओगे। भगवान के चरणों में भगवान का भगत बनकर जाओ, भगवान का पुजारी बन करके जाओ तो तुम्हारा सब कुछ हो जाएगा। 

दूसरी बात इस तरह का अनुबंध करके जो लोग जाते हैं वे भूल जाते हैं कि चमत्कार को नमस्कार करना अज्ञान है। सच्चे अर्थों में तो नमस्कार में चमत्कार है। तुम श्रद्धा से भरकर भगवान को पूजों तब तुम्हारे जीवन में चमत्कार होगा। तुमने तो भगवान को आजमाने की ठान ली। तुम भगवान को आजमाओगे तो एक दिन भगवान तुम्हें ऐसे आजमाएँगे कि तुम कहीं के नहीं रहोगे। इसलिए कभी इस तरह की प्रवृत्तियाँ नहीं करना चाहिये।

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