क्या शुद्ध वस्त्र पहनकर ही अभिषेक करना चाहिए?

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शंका

क्या शुद्ध वस्त्र पहनकर ही अभिषेक करना चाहिए?

समाधान

यह बुद्धि की बलिहारी है। आपने बोला सूट और बूट- मुझे आश्चर्य हुआ सुनकर, सूट का समाचार तो मेरे पास था, यह बूट कहाँ से आ गया? ऐसा? क्या बोलूँ ऐसे लोगों को! मुझे अभी कुछ लोगों ने बताया है कि एक दो जगह पर भगवान का अभिषेक करा दिया गया और जिन वस्त्रों को आप दिनभर पहनते उन्हीं वस्त्रों से अभिषेक करा दिया गया और उसमें वह जैन नहीं, कोई नेता, मंत्री नेता मंत्री को अपने कार्यक्रमों में बुलाना है तो बुलाए, लेकिन इस तरह नहीं करना चाहिए 

मैं एक घटना आप सबके सामने रखना चाहता हूँ श्रवणबेलगोल में जब भगवान बाहुबली का सहस्त्राद्बी महोत्सव था उस समय श्रीमती इंदिरा गांधी भारत की प्रधानमंत्री थी। वो वहाँ पहुँची और उन्होंने भगवान के अभिषेक की इच्छा व्यक्त कियीआयोजकों के सामने एक धर्म संकट खड़ा हो गयाक्या करें? विद्यानंद जी महाराज थे, देशभूषण महाराज थे, लेकिन सब ने बहुत विवेक से काम लिया और कहा इंदिरा जी से सुरक्षा के सारे उपाय फेल हो जाएंगे, आप कहाँ  अभिषेक करोगी, कहाँ उपर जाओगी, आप तो हेलीकॉप्टर से पुष्प वर्षा कर लो और काम हो गया यह सच्चे धर्म की प्रभावना समझ गए? लेकिन आजकल लोग भावनाओं में बहने लगे और हमारी ही मर्यादा को, अपने ही मर्यादा को अपनी ही हाथों तार-तार करने लगे यह धर्म की प्रभावना नहीं, यह भगवान की असाधना है जो महान पाप का कारण है 

जो लोग यह कहते हैं कि शुद्ध वस्त्रों में ही भगवान का अभिषेक करने का विधान कहाँ है, मैं उनसे कुछ नहीं कहता केवल  पूजा की पीठिका के एक श्लोक को याद कर लो, तो तुम्हें तुम्हारे संविधान का पता लग जाएगा। 

आप लोग पूजा पीठिका में बोलते हो –

द्रव्यस्य शुद्धिमधिगम्य यथानुरूपं, भावस्य शुद्धिमधिकामधिगन्तुकामः ।

आलम्बनानि विविधान्यवलम्ब्य वल्गन, भूतार्थ यज्ञ पुरुषस्य करोमि यज्ञं ।।

यह क्या है, इसका अर्थ?  

यथानुरूपं – जैसा कहा गया उसके अनुरूप में द्रव्य की शुद्धि को अंगीकार कर के, 

भावस्य शुद्धिमधिकामधिगन्तुकामः – उत्कृष्ट भाव विशुद्धि को प्राप्त करने की इच्छा रखनेवाला मैं,

विविधानि आलम्बनानि अवलम्ब्य – विभिन्न प्रकार के आलम्बनोंका शीघ्रतासे आलम्बन लेकर, 

भूतार्थ यज्ञ पुरुषस्य करोमि यज्ञं – सच्चे पूज्य पुरुष की पूजा करता हूँ, परमात्मा की पूजा करता हूँ

यह क्या बोलते हैं? हमारे शास्त्रों में सकली करन का विधान है। विधि विधान से पूर्व सकली करण और शुद्धि का स्पष्ट विधान है जो लोग ऐसा तर्क देते हैं कि- “शुद्ध वस्त्र पहन कर के ही अभिषेक करने का विधान कहाँ है?” उन्होंने आगम को और परंपरा को जाना ही नहीं यह महान अज्ञानता हैं। अगर कोई परिस्थिति वश ऐसी गलती हो गई, तो चलो उस गलती को स्वीकार कर लेना तो फिर भी समझ में आता है और यहाँ चोरी पर सीना-जोरी करने की तरह यह कहना कि “आगम में कहाँ लिखा” यह तो बहुत बुरी बात है ऐसे लोग जिनकी आँखें फूटी हो, वे समाज को आईना दिखाने का धंधा करने लगे तो भगवान ही क्या भला करेगा? क्या कह सकते हैं? यह बहुत अच्छी बात नहीं हैं और ऐसे लोगों को कभी प्रोत्साहित नहीं करना चाहिए इस तरह की घटनाओं की निंदा करनी चाहिए ताकि दोबारा ऐसी घटना की पुनरावृत्ति कहीं ना हो 

धर्म प्रभावना में मर्यादा की सुरक्षा का सदैव ध्यान रखना चाहिए मर्यादाओं को तोड़ कर की गई प्रभावना, प्रभावना नहीं अप्रभावना है

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