पद्मावती देवी के ऊपर विराजमान भगवान् पार्श्वनाथ का अभिषेक करना चाहिए या नहीं?

150 150 admin
शंका

पद्मावती माता के ऊपर जो भगवान पार्श्वनाथ विराजमान रहते हैं, उनका अभिषेक करें या न करें?

समाधान

पद्मावती की मूर्ति का जो अंकन है इसके विषय में थोड़ा समझिए। आगम में भगवान पार्श्वनाथ के उपसर्ग पर जब हम चर्चा करते हैं तो देखते हैं कि कहीं भी ऐसा नहीं आया कि पद्मावती ने अथवा धरणेन्द्र ने भगवान को उठाया हो। सबसे पहली बात तो ये कि भगवान पार्श्वनाथ के उपसर्ग के निवारणार्थ जो देव-देवी आये थे उनमें देव तो धरणेन्द्र था लेकिन देवी का नाम आगम के किसी मूल ग्रन्थ में नहीं लिखा। पद्मावती नाम कहीं नहीं लिखा, एक बड़ा भ्रम है। उत्तर पुराण में तीन जगह लिखा है धरणेन्द्र और उसकी देवी। राजवार्तिक में उसकी देवी के रूप में पद्मा का नाम नहीं लिखा, दिती, अदिती आदि नाम तो हैं। ये कहाँ गड़बड़ हुई, इसकी चर्चा अभी थोड़ी देर बाद करूँगा। हम थोड़ा इतिहास में जायें, पुराणों में ऐसा आता है कि जब भगवान पार्श्वनाथ पर उपसर्ग हुआ, सात दिन तक उपसर्ग हुआ तो धरणेन्द्र का आसन काँपा और वह अपनी देवी के साथ प्रकट हुआ। प्रकट होने के उपरान्त धरणेन्द्र ने अपना फणमण्डल भगवान के ऊपर तान दिया और उसकी देवी उसके ऊपर छत्र लेकर खड़ी हो गयी तो धरणेन्द्र ने फण फैलाया और उसकी देवी ने उसके ऊपर छत्र ताना। इसका सबसे प्राचीन उल्लेख आचार्य समन्तभद्र स्वामी का मिलता है। उन्होंने एक श्लोक लिखा; वहाँ उन्होंने धरणेन्द्र का उल्लेख किया, लेकिन उसकी देवी का नहीं किया और बताया कि धरणेन्द्र ने जो नागकुमार जाति का इन्द्र था, उसने अपने फण मण्डल से पूरे आकाश मण्डल को ऐसे व्याप्त कर लिया, जैसे संध्या के काल में आकाश को लालिमा व्याप्त कर लेती है। इसके अलावा उसका उल्लेख उत्तर पुराण में देखते हैं जहाँ पूरे घटनाक्रम का विवेचन है और वहाँ आचार्य महाराज ने लिखा कि जब भगवान पर उपसर्ग हुआ धरणेन्द्र आया, उसने भगवान पर फणमण्डल फैलाया और उसकी देवी ने उस फणमण्डल के ऊपर वज्रमई दण्ड से युक्त छत्र तान दिया। वहाँ पर तीन स्थान पर धरणेन्द्र और उसकी देवी लिखा; वहाँ कहीं भी उसकी पत्नी का नाम पद्मावती के रूप में या पद्मा के रूप में अंकित नहीं किया। इसके बाद ये इन्होंने ही किया और ऐसा ही रूप ऐलोरा की गुफा में भगवान पार्श्वनाथ की आठवीं शताब्दी की एक प्रतिमा में अंकित है, उसकी तस्वीर मेरे पास है। पार्श्वनाथ भगवान उपसर्ग मुद्रा में खड़े हैं और कालसंवर नाम का जो देव है वह उनके ऊपर उपसर्ग कर रहा है। विभिन्न प्रकार के उपसर्गों का दृश्य है और धरणेन्द्र है। वह और उसकी देवी चरणों में नाग-नागिन का एक युगल है। देव-देवी भगवान के चरणों में प्रणात कर रहे हैं और धरणेन्द्र ने फिर फण फैलाया हुआ है और उसकी देवी बगल में खड़ी है। भगवान को दोनों ने छुआ भी नहीं है। उपसर्ग के दौरान मुनि को उठा लेना एक नया उपसर्ग कर देना है। ऐसा तो कोई नहीं कर सकता। प्राचीन उल्लेख में प्रमाण यही मिलता है और पुरानी जिन प्रतिमाएँ जितनी हैं वे ऐसी ही मिलती हैं। बाद के काल में पन्द्रहवीं-सोलहवीं शताब्दी के बाद जब जैन परम्परा में मन्त्र-तन्त्र चमत्कार आदि की बातें घुस गईं तो फिर इस तरीके से देवियों की कल्पनाएँ की गई और उन्हें जैन देवी बनाये रखने के लिए उनके ऊपर भगवान पार्श्वनाथ को बिठा दिया। पद्मावती का इससे कोई सम्बन्ध नहीं है। ये दोनों धरणेन्द्र और उनकी देवी नहीं है, ऐसा आगम के प्राचीन ग्रन्थों से मिलता है। ऐसा लगता है कि धरणेन्द्र की देवी का नाम ही नहीं मिलता है। इसलिए आचार्यों ने देवी शब्द का प्रयोग किया, पद्मावती नहीं लिखा।

पार्श्वनाथ भगवान् के यक्ष का नाम धरणेन्द्र है, उसकी यक्षिणी पद्मावती, पद्मावत् या पद्मावती है। यक्ष और यक्षिणी व्यन्तर देव होते हैं। भगवान पार्श्वनाथ की रक्षा से जुड़े देव-देवी भवनवासी देव हैं और उनका नाम धरणेन्द्र-पद्मावती नहीं है। ये समझो और इन दोनों ने भगवान को कहीं से हाथ ही नहीं लगाया। जब हाथ ही नहीं लगाया तो इस तरह के प्रतिमा के अंकन का सवाल ही नहीं; और अंकन का सवाल नहीं तो उनकी पूजा का भी सवाल नहीं उठता।

Share

Leave a Reply