क्या हमें अन्य धर्मों में भेद करना चाहिए?

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शंका

क्या हमें हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई में फर्क करना चाहिए?

समाधान

हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई जहाँ तक हैं, अलग-अलग है, तभी तो अलग-अलग बने है। जहाँ तक सवाल है इनमें फर्क करने का, हमें किसी से नफरत नहीं करनी चाहिए। लेकिन अपनी पहचान तो बना करके चलना चाहिए। हम किस विश्वास में जीते हैं, किस आस्था और किस परम्परा में जीते हैं, हमें जब तक उसका विश्वास और भरोसा नहीं होगा तब तक हम अपने मार्ग को आगे नहीं बढ़ा पाएँगे। अन्य धर्मों के प्रति सहिष्णुता होनी चाहिए लेकिन ऐसा नहीं है कि व्यक्ति अपने किसी एक कॉन्सेप्ट में ही स्थिर न रहे। धर्म हम अपने जीवन के कल्याण के लिए पकड़ते हैं, आत्मसात करते हैं, तो जिसके माध्यम से हमें हमारा कल्याण दिखे, अपनी आस्था से अनुबंधित हो करके ही चलना चाहिए। औरों के प्रति आप सद्भाव रखें लेकिन इसका तात्पर्य ये नहीं है कि सब में एक सा भाव हो- सद्भाव अलग है और समभाव अलग है। 

जैन धर्म के महत्त्व को जब तक आप नहीं समझेंगे और जैन धर्म की विशेषताओं को जब तक आप नहीं पहचानेंगे, तब तक अपने जीवन का पथ प्रशस्त नहीं किया जा सकता। इसलिए हम जैन धर्म की मौलिकता को पहचानें और जानें कि ये एक ऐसा धर्म है जिसके बल पर हम अपने जीवन में विशिष्ठ प्रकट कर सकते हैं, जिसके बल पर हम अपने जीवन को बेहतर बना सकते हैं, जो हमें अन्य धर्मों से एक अलग रास्ता बताता है, जो हमारे जीवन की पवित्रता और आत्मा की शुद्धिकरण का आधार है। जब तक आप इसे नहीं समझेंगे, तब तक आप आगे नहीं बढ़ सकते हैं। 

हालाँकि सभी धर्मों और परम्पराओं में व्यक्ति को दुःख से मुक्त करने की बात की जाती है लेकिन इसके बाद भी सब में कुछ न कुछ अन्तर है और अन्तर है तभी इतने सारे मत बने हैं। हमें अपनी श्रद्धा के आधार को मजबूत रखना चाहिए और धर्म के विषय में अपना कॉन्सेप्ट बिल्कुल सही रखना चाहिए।

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