परिवारजनों की उपेक्षा कर मंदिरों में दान देने वाला क्या दानी कहलाने योग्य है?

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शंका

कोई व्यक्ति बहुत दान देता है और बहुत बोलियाँ लेता है। परन्तु उसके परिवार में कुछ लोग गम्भीर रोग से पीड़ित हैं और अर्थ अभाव में हैं, उन्हें वो मदद नहीं करता। क्या वह दानी धर्मात्माओं की श्रेणी में आयेगा?

समाधान

दान देना अच्छा कार्य है लेकिन जो दान देता है उसके अन्दर संवेदना भी होनी चाहिए और यदि कोई मरता दिखता है, तो उसके लिए सहयोग के लिए तत्परता से आगे आना चाहिए और अपने ही परिवार के लोगों के साथ ऐसा करना और उनकी उपेक्षा करना इसका मतलब वो व्यक्ति आत्मनिष्ठ और अध्यातमनिष्ठ नहीं है। आध्यातम निष्ठा, आत्मनिष्ठता  जागृत किए बिना सच्चे अर्थों में कोई धर्मात्मा नहीं हो सकता। उन्हें चाहिए कि वह दान करें, उनके द्वारा किया गया दान का कार्य सराहनीय है लेकिन अपनों की उपेक्षा उनके भीतर की संवेदनहीनता की अभिव्यक्ति है; और कहते हैं संवेदन शून्य मनुष्य के हृदय में धर्म प्रकट नहीं होता- जैसे शुष्क धरती पर बीज अंकुरित नहीं होता वैसे ही जिसका हृदय संवेदना-शून्य है, आदर नहीं है उसके अन्तरंग में धर्म का अंकुर प्रस्फुटित नहीं होता।

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