वर्तमान में बच्चों को धर्म के प्रति दृढ़ रहना चाहिए या एडजस्ट करना चाहिए?

150 150 admin
शंका

धर्म के प्रति जो माँ-बाप का बच्चों को यह कह देते हैं ‘चलता है’, उसको लेकर मेरा प्रश्न है। अभी मेरा बेटा बेंगलुरु गया था, आल ओवर इंडिया क्विज प्रोग्राम करने के लिए, आने-जाने की व्यवस्था उनकी तरफ से थी। उनको सेवन स्टार होटल में ठहराया था, वहाँ पता चला कि वेज-नॉन वेज दोनों हैं तो उस बच्चे ने खाना नहीं खाया, सिर्फ फल खाए और मठरी वगैरह आदि दी वो खाया। वहाँ पर ८-१० बच्चे और जैन परिवार से थे। उन सब ने वहाँ खाना खाया। उन लोगों ने कहा कि ‘ये भी तो खा रहे हैं तुम भी ‘एडजस्ट’ करो।’ बच्चे ने मना कर दिया, उसने एक दिन खाना नहीं खाया, फल खाया, मठरी खा ली। और दूसरे दिन का खाना बाहर से पेक होकर आया। अगर अपने बच्चों को यह संस्कार दें तो क्या हम अपने बच्चों की प्रोग्रेस रोक दें या धर्म के साथ ऐडजस्ट करते रहें?

समाधान

सबसे पहली बात तो मैं इस पूरे प्रकरण में कहूँगा कि ऐसे बच्चों की जी भर के सराहना करनी चाहिए और उन्हें प्रोत्साहित करना चाहिए। तुम्हारे जैसे बच्चों और उनके पेरेंट्स से मैं कहना चाहता हूँ इस प्रसंग से एक सीख लो! जो लोग खा लिए वो जनरल रहे, जो नहीं खाए, दृढ़ रहे, वो स्पेशल बन गये। उनके लिए अलग से पैक हो करके आया। प्रभाव किसका पड़ा? खाने वाले का नहीं, न खाने वाले का। इसलिए धर्म के नाम पर, अपने उसूलों के नाम पर कभी समझौता मत करना। अपना जीवन पेड़ की भाँति बनाओ। पेड़ खड़ा होता है, उसकी शाखा-प्रशाखायें हवा में झूमती है, झूलती है, कभी-कभी ऐसा लगता है जैसे धरती को चूम रही हैं लेकिन उसका तना हमेशा तना रहता है-इसलिए नाम ही है उसका तना। अगर पेड़ के साथ उसका तना झुक जाए तो पेड़ ही उखड़ जाएगा इसलिए मैं सबसे कहना चाहता हूँ कि अपने व्यवहार में पेड़ की भाँति आप विनम्र रहो लेकिन अपने सिद्धान्त और उसूलों के तने को कभी झुकने मत दो, उसे तना रखो, उसमें कोई कंप्रोमाइज नहीं! स्थिरता रखोगे तभी लाभ होगा। १ दिन २ दिन का उपवास करने से आदमी मरता नहीं है, दृढ़ता रखना चाहिए। मेरे सम्पर्क में ऐसे लोग भी हैं, बैनाडा जी ने बताया था कि आपके परिवार से बेटे ने रुड़की से आई. आई. टी.  की, पर रात में नहीं खाते थे तो वहाँ के हॉस्टल का नियम बदल गया, इनकी दृढ़ता के कारण, जो लोग कहते हैं “चलता है” वो धर्म को भी चलता कर देंगे। ये एकदम गलत दृष्टिकोण है, धर्मनिष्ठा का अभाव है। आप खुद मजबूत बनें और अपने बच्चों को मजबूती दें। यह दृढ़ता जब तक रहेगी तभी तक धरती पर जैन धर्म टिका रहेगा। यह आप सब की सामूहिक जिम्मेदारी है।

Share

Leave a Reply