सफ़र करते हुए भाव पूजा में अष्टद्रव्य का अर्घ्य बोलना चाहिए?

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शंका

बहुत से लोग plane (हवाई जहाज़) में या ट्रेन में जाते हैं तो वो भाव पूजा करते हैं। क्या उन्हें अष्टद्रव्य का अर्घ्य बोलना चाहिए?

समाधान

प्लेन, रेल या अन्य जगहों में आप जो पूजा बोलते हैं वो पूजा नहीं है, वो आपकी स्तुति है। आप लोग बोलते हो भाव पूजा है। भाव पूजा और द्रव्य का अन्तर समझ लीजिए। 

अष्टद्रव्य से अपनी भक्ति की अभिव्यक्ति का नाम पूजा है और ये अष्टद्रव्य आडम्बरों के साथ जब आप अपनी भक्ति को प्रकट करते हैं, भाव जोड़ते हैं तब वो भाव पूजा है। पर मुँह से शब्द बोल रहे हैं, हाथ से अर्घ्य चढ़ा रहे हैं और मन उससे नहीं जुड़ रहा है तब वो द्रव्य पूजा है। आप लोग अष्टद्रव्य लेकर जो पूजा करते हैं उसे द्रव्य कहते हैं और बिना द्रव्य सामग्री के जो पूजा करते हैं उसे भाव पूजा कहते हैं। 

आचार्य वीरसेन महाराज के अनुसार तो बिना द्रव्य सामग्री की पूजा, पूजा ही नहीं है, स्तुति हो सकती है। जल, गन्ध, अक्षत, दीप, धूप आदि जो अष्ट द्रव्य हैं उनके माध्यम से अपनी भक्ति के प्रकाशन का नाम अर्चना यानि पूजा है- द्रव्य पूजा; और भाव द्वारा भगवान की स्तुति कर रहा हूँ, हाथ जोड़ रहा हूँ, सिर नवां रहा हूँ, ये द्रव्य है। जो शरीर की क्रिया है ये द्रव्य श्रवण है। इसी तरह आप पूजा में द्रव्य चढ़ा रहे हैं, शब्द बोल रहे हैं, ये द्रव्य पूजा है, उसके साथ जो आपका मन जुड़ रहा है उसका नाम भाव पूजा है। तो आपसे ये कहूँगा कि द्रव्य पूजा करना बंद कर दीजिए, भाव पूजा करना शुरू कीजिए। 

यात्रा में क्या करें? वहाँ तो सामग्री है ही नहीं? तो वो आपका स्तवन है। जल है नहीं, तो वहाँ नमः बोलें। पूजन की पंक्तियों को स्तुति का रूप देकर आप बोलते हैं तो कोई बुराई नहीं। उस समय आपके मुख से जो उच्चारण है वो द्रव्य स्तुति है और उसके साथ आपके मन की जो एकाग्रता है वो भाव हैं।

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