क्या एक जैन को जिनदेव के अतिरिक्त किसी अन्य की शरण में जाना चाहिए?

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शंका

क्या एक जैन को जिनदेव के अतिरिक्त किसी अन्य की शरण में जाना चाहिए?

समाधान

ऐसे वे लोग होते हैं जो मुँह से तो कहते हैं- ‘चत्तारि शरणम् पव्वज्जामि’ और उनके हृदय में जो दिखता है वह शरण बन जाता है। सच्चे अर्थों में देखा जाए तो ऐसे लोग किसी के नहीं होते। ‘गंगा गए गंगादास, जमुना गए जमुनादास’ – यह सब ‘बिन पेंदे के लोटे’ हैं, भटकते ही रहेंगे।

 इसलिए ऐसे लोगों के लिए कहा गया कि इनका कभी उद्धार नहीं हो सकता। हम जिन मत के अनुयाई हैं, हमें जिन शासन की शरण मिली है। उस वीतराग स्वरूप को समझना चाहिए और उस वीतराग आदर्श को अपने जीवन में आत्मसात करके जीवन के उत्थान का प्रयास करना चाहिए।

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