मोक्ष का विज्ञान!

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शंका

मोक्ष का विज्ञान!

समाधान

मोक्ष का मतलब है छूट जाना, मुक्त हो जाना बन्धन के टूट जाने का नाम मोक्ष है। 

हर जीव के साथ कर्म का बन्धन है, वह अनादि से है। वह बन्धन जब टूटता है, तो मोक्ष होता है। जैसे कोई व्यक्ति वर्षों से जेल में हो, सजा पूरी होती है, वो बाहर आता है, मुक्त हो जाता है। बन्धन का मतलब है-पर का नियंत्रण; मुक्ति का मतलब है-स्व का अनुशासन! हमारी आत्मा कर्म से आबद्ध है, कर्म के नियंत्रण में है। हम पर कर्म का शासन चलता है। जब साधना के बलबूते हम कर्मों का अन्त करते हैं, तब हमें मुक्ति मिलती है, उसे ही सिद्धि बोलते है। जिसे कहा गया है, सिद्धि स्वात्मोपलब्धि-आत्मा की उपलब्धि! बोलचाल की भाषा में यदि मैं मोक्ष की विवेचना करूँ तो कह सकता हूँ, आत्मा की परिपूर्णता का नाम मोक्ष है। संसार दशा में हम अपूर्ण रहते हैं क्योंकि हमारी आत्मा के गुण पूरी तरह विकसित नहीं हो पाते, कर्म उन्हें रोक देते हैं। कर्मों का अन्त हो जाने पर हमारे आत्म-गुण पूरी तरह से विकसित हो जाते हैं, इसलिए हम मुक्त कहलाते हैं। बन्धन से मुक्त होने का नाम मोक्ष है। 

जैन धर्म के अनुसार मोक्ष का मतलब सब प्रकार के कर्मों से रहित हो जाना। आत्मा की सहज, शुद्ध, स्वाभाविक अवस्था का प्राप्त हो जाना। आत्मा में अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त सुख, अनन्त शक्ति और अव्याबाध्यत्व जैसे गुणों की अभिव्यक्ति हो जाना। अनन्त गुणों से भरपूर हो जाना। हमेशा-हमेशा के लिए देह रहित होकर ज्ञानरूप आत्मा में लीन हो जाना, यह मोक्ष की अवधारणा है। 

आत्मा की क्या अनुभूति होती है? सच्चे अर्थों में मोक्ष में केवल आत्मानुभूति ही होती है क्योंकि आत्मा के अतिरिक्त सब कुछ हट चुका होता है। शुद्ध आत्मा होती है। ज्ञान ही हमारा शरीर है। जहाँ राग है न द्वेष है। इष्ट है न अनिष्ट है। कुछ भी नहीं केवल जानना और देखना है। यह मोक्ष की अनुभूति है।

मोक्ष की प्राप्ति के लिए शारीरिक और मानसिक योग्यताओं की बात आप ने की है। मोक्ष की प्राप्ति के लिए कर्मों को विनष्ट करने की क्षमता हमारे पास होनी चाहिए। कर्म विनष्टता की दृष्टि से हमारे यहाँ, सहनन का होना आवश्यक बताया है। उत्तम सहनन! कर्म शास्त्र की भाषा में वज्रवृषभनाराच सहनन कहते है। सहनन वह शक्ति है जिससे हमारे अस्थि बन्धन मजबूत होते हैं और हमारी सहनशक्ति भी विकसित होती है। जिसके पास उत्तम सहनन है वो मोक्ष जा सकेगा क्योंकि यह सहनन हमारे ध्यान की एकाग्रता में भी सहायक होते हैं। बिना उत्तम सहनन के मोक्ष के योग्य ध्यान की प्राप्ति नहीं होती और चित्त के पार जाने पर चित्त के निरोध से मुक्ति होती है, केवल ज्ञान होता है, मोक्ष होता है। तो मोक्ष को प्राप्त करने के लिए हमें चाहिए कि उत्तम सहनन जिसे वज्रवृषभनाराच सहनन कहते हैं और मानसिक रूप से शुक्ल ध्यान, ध्यान की सबसे परम अवस्था; ये दोनों चीजें हमारे लिए मोक्ष में चाहिए। 

मोक्ष की विधि क्या है? जब कोई साधक बाहर और भीतर से निर्ग्रन्थ होकर अपनी आत्मा के ध्यान में लीन होता है, आत्मा में डूबता है, उसकी चेतना का ऊर्ध्वारोहण प्रारम्भ हो जाता है। उसी घड़ी सबसे पहले उसकी आत्मा में लगे घातिया कर्मों के राजा- मोहनीय कर्मों का क्षय होता है और मोहनीय कर्म का क्षय होते ही यह साधक क्षीण मोह बन जाता है और फिर अपने ध्यान की विशुद्धि से एक साथ शेष घातिया कर्म, ज्ञान, दर्शन और शक्ति को प्रभावित करने वाले तीन- ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय और अन्तराय संग्रहीत कर्मों का एक साथ विनाश करता है। जैसे ही इन घातिया कर्मों का क्षय होता है, आत्मा सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, केवल ज्ञानी परमात्मा हो जाता है। केवल ज्ञान प्राप्त होने के उपरान्त जब तक उनकी आयु शेष रहती है, वे इस धरती पर विचरण करते हुए अपना तत्वोपदेश भी देते हैं। जब उनकी आयु का अल्प समय शेष रहता है, शास्त्रीय भाषा में ‘अन्तरमुहूर्त’, कुछ मिनट बचते हैं तो वे फिर एक जगह स्थिर होकर, अपनी प्रवृत्तियों को नियंत्रित करते हैं, जिसे योग विरोध कहा जाता है। वह अपने शारीरिक, वाचिक और मानसिक स्पंदनों को निरुद्ध करते हैं। उनके श्वास-उच्छवास भी निरुद्ध हो जाते हैं। उनका पूर्ण शरीर निष्कम्प हो जाता है, आत्मा पूरी तरह से निष्कम्प हो जाती है। उस अवस्था को अयोग केवली कहते है। उसी अवस्था में जैसे ही शेष बचे अघातिया कर्मों का विनाश होता है, शरीर कपूर की तरह उड़ जाता है, नख और केश मात्र शेष रह जाते हैं और आत्मा सीधे वहाँ से सिद्धालय में, लोक के अन्त में जाकर, स्थिर हो जाती है और अनन्त काल के लिए यथावत वहाँ रहती है। यह हमारे मोक्ष की विधि या प्रक्रिया का सामान्य रूप है।

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