कषायों की सल्लेखना ही मुख्य सल्लेखना है!

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शंका

कषायों की सल्लेखना ही मुख्य सल्लेखना है!

समाधान

यदि आप सही क्षपक या साधक को देखें तो आप पायेंगे कि मुनि महाराज यदि सल्लेखना करते हैं तो उनको क्षपक कहा जाता है और यदि गृहस्थ की सल्लेखना होती है, तो उसे साधक कहा जाता है, इन शब्दों को ध्यान रखना। क्षपक शब्द मुनियों के लिए होता है, गृहस्थों के लिए नहीं! यदि आपने अच्छे साधक या अच्छे क्षपक की सल्लेखना देखी होगी तो आप निश्चित देख पायेंगे कि उनके अन्त में परिणामों की विशुद्धि भी उत्तरोत्तर होती है। बिना कषाय सल्लेखना के, शरीर को कृश करने मात्र से हमारा कल्याण नहीं होता। हमारे यहाँ कहा गया है कि हमारी सारी तपस्या तभी सार्थक है, जब हमारे मन में समता जुड़ी रहे अन्यथा सब निरर्थक है। गुरुदेव ने लिखा है कि मासों उपवास करना, वनवास जाना, स्वयं को तपाना, तन को सुखाना, सिद्धान्त का मनन चिन्तन करना और मौन धरना यह सब व्यर्थ है, श्रमण के बिन साम्य पाना यदि आपने कषाय का श्रमण नहीं किया, समता को प्राप्त नहीं किया तो आपकी सारी साधना व्यर्थ है। 

इसलिए कषाय सल्लेखना तो मुख्य सल्लेखना है और वह तो हर पल करनी चाहिए, हर साधक को हर व्यक्ति को करना चाहिए। अपनी कषाय के श्रमण के प्रति जागरूकता होनी चाहिए और मैंने जितने भी क्षपक या साधक की साधना को देखा है या भाग लिया है, तो मैंने यह पाया है कि जो उनका समय नजदीक आता है परिणामों की विशुद्धियाँ उत्तरोत्तर बढ़ती जाती हैं।

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