धर्म और विज्ञान!

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शंका

हमारे सामने दो चीजें हैं विज्ञान और आध्यात्म। एक तरफ विज्ञान में बहुत तरक्की की है साइकिल से लेकर हेलीकॉप्टर, एरोप्लेन, सेटेलाइट तक बनाये, चिकित्सा के क्षेत्र में भी इतना विकास किया है जो बहुत चरम सीमा तक पहुँच गया। विज्ञान के सिद्धान्त और उन पर जो प्रैक्टिकल हो रहे हैं वह आज मनुष्य अपनी नजरों से देख सकता है और आज की लौकिक शिक्षा भी जो है वह विज्ञान पर आधारित है लगभग हर व्यक्ति अपने आप में पढ़ा लिखा होने के बाद वैज्ञानिक ही है और दूसरी तरफ अध्यात्म के जो सिद्धान्त गुरुओं ने लिखे हैं और धर्म की बातें हैं वह आज प्रैक्टिकल आँखों से इतनी नजर नहीं आती। पाप-पुण्य, धर्म, चारों गतियों में दो गतियाँ नजर आती है, दो गतियाँ नजर नहीं आती है। तीन लोक का स्वरूप विज्ञान कुछ और बताता है धर्म कुछ और बताता है, तो और बहुत सी बार आज की यह समस्या हो गई है कि धर्म के कुछ सिद्धान्तों को पढ़े-लिखे लोगों को समझाने के लिए यह भी कहा जाता है कि अब तो साइंस में भी इसे प्रूफ कर दिया इसलिए आप इसको एक्सेप्ट कर लो तो क्या गुरुदेव यहाँ पर धर्म विज्ञान से पीछे रह गया है क्या।

समाधान

मैं आपको बताऊँ, धर्म और विज्ञान दोनों एक दूसरे के विरोधी नहीं पूरक है, दोनों की दिशा में भिन्नता है। विज्ञान की सारी निष्पत्तियाँ प्रयोग पर आधारित है और धर्म या अध्यात्म की जो निष्पत्ति हैं वह अनुभव पर आधारित है। प्रयोग आधारित निष्पत्तियाँ समय काल के अनुरूप परिवर्तित होते जाती है। जैसे हम केवल एटॉमिक सिस्टम के बारे में समझायें, एटामिक पावर के विषय में समझे, डाल्टन के परमाणुवाद से लेकर अभी हॉकिंस जिसने गॉड पार्टिकल की खोज की यहाँ तक आए तो परमाणु की अवधारणा में कितना अन्तर आ गया, कितना बड़ा अन्तर आ गया। उसकी पुरानी सारी निष्पतियाँ कचरे के ढेर में डालने लायक हो गई। तो प्रयोग रोज बदलते हैं निष्पत्तियाँ रोज बदलती है निष्कर्ष रोज बदलते हैं इसलिये विज्ञान की अपनी प्रगति होती है लेकिन अनुभव सदा एक सा रहता है। मुँह में मिश्री डालने पर मुँह मीठा होगा तो होगा। सबका मुँह मीठा होगा इसके लिए किसी प्रयोग करने की जरूरत नहीं है, अनुभव है। एक बच्चा हो या बूढ़ा सबका हमेशा अनुभव एक ही होगा तो अध्यात्म हमेशा अनुभव आधारित निष्पत्तियाँ देता है, तो यह धर्म से जो कुछ भी कहा गया वह अनुभव के आधार पर कहा गया, प्रत्यक्ष ज्ञान के बल पर कहा गया। अब रहा सवाल कुछ बातों का जो विज्ञान आज कुछ कहता है और हमारे धर्म ग्रंथों में कुछ लिखा है। उसके पीछे भी हमें बहुत व्यापकता से सोचना चाहिए। धर्म शास्त्रों में जो लिखा है वह अपनी जगह बिल्कुल सही लिखा है और विज्ञान की जो निष्पत्तियाँ है वह भी अपनी जगह सही है, गलत नहीं हैं। फिर महाराज यह फेर क्या? फेर उनमें नहीं फेर हमारी समझ में है। विज्ञान को जो दिखा वो उसने लिखा और विज्ञान ने जो देखा बहुत लिमिटेड को देखा, जो व्हिजिबल है उसको विज्ञान ने देखा। हमारे ऋषि-मुनियों सन्तों ने जो इनविजिबल है उसका भी अनुभव किया। ऐवरी विजिबल फोर्स के पीछे एक इनविजिबल फोर्स होता है, साइंस उसे नहीं पकड़ पाता, उसे केवल अनुभव से जाना जाता है। पंखा चल रहा है, यह विजिबल है लेकिन पंखा किस फ़ोर्स से चल रहा है उसके पीछे पावर है। पावर दिख रही है? पावर दिखेगी नहीं, पावर का अनुभव होगा कब, जब टच करोगे तब समझ में आयेगा, तो विज्ञान की बहुत केवल दृश्य के सह तक हैं और धर्म अदृश्य तक अपनी पहुँच रखता है। इसलिये धर्म विज्ञान से बहुत ऊपर है। यही कारण है कि धर्म की अवधारणा कभी बदलती नहीं। आपने यह कहा कि बहुत सारी व्याख्या ऐसी है जो आज साइंस से नहीं मिलती, बिल्कुल नहीं मिलती पर मैं बता रहा हूँ कि हमारे धर्म शास्त्रों में जो लिखा है वह पूरा नहीं है, हमारे बहुत सारे धर्म शास्त्र नष्ट हो गए। धर्म ग्रंथों में जो सूचनायें हमें उपलब्ध है उनकी व्याख्या हमारे पास बहुत थोड़ी है इसलिए हम जो व्याख्या कर पा रहे हैं वो पूरी नहीं कर पा रहे हैं। अगर हमारे सारे शास्त्र होते, ६-महीने तक होली जलाई गई हमारे शास्त्रों की, तो आज वो होते तो शायद हमारी सूचनायें कुछ और होती। आपने एक सवाल किया कि लोग यह कहने लगते हैं कि अब तो साइंस ने भी इसको मानने लगा तो क्या यहाँ साइंस का स्तर धर्म से ऊपर हो जाता है? बहुत अच्छा सवाल किया। ऐसा कहने का तात्पर्य ये नहीं है कि साइंस इससे आगे बढ़ गया। हमारे यहाँ परम्परा रही कि जो जिस भाषा को जानता है उसे उसी भाषा में समझाओ। अनार को अनार की भाषा में समझाओ तब समझ में आएगा। आज के लोग विज्ञान, विज्ञान, विज्ञान, विज्ञान की रट लगाते हैं सब विज्ञानवादी हैं। साइंस, साइंस, साइंस अब तो साइंस का युग भी चला गया, टेक्नोलॉजी का युग आ गया, साइंस से दो कदम आगे टेक्नोलॉजी है, तो वह उसकी बात सोचता है, तो भैया तू साइंस साइंस साइंस की बात करता है, अब तो समझ। साइंस भी यही कह रहा अब तो समझ। ये साइंस है वो सुपर साइंस है। सुपर साइंस, इसे जिस दिन समझेगा उस दिन तेरे जीवन की दिशा और दशा अपने आप परिवर्तित हो जाएगी और जीवन धन्य बन जाएगा तो उसे देखनी चाहिए। आज के विज्ञान के पीछे भागने वाले लोगों की हालत कैसी है आपको मालूम? हर बात को विज्ञान का प्रूफ, विज्ञान का प्रूफ, विज्ञान का प्रूफ चाहिए, विवेकानंद जी ने एक दिन ऐसे विज्ञान प्रेमियों के ऊपर एक बहुत करारा व्यंग्य किया। उन्होंने कहा है कि विज्ञान प्रेमी व्यक्ति था, उससे कहा तुम्हारे पिताजी मर गये, बोले अच्छा मेरे पिताजी मर गए, मैं ऐसे नहीं मानूँगा पहले अखबार दिखाओ उसमें छपा है कि नहीं, बलिहारी हो ऐसे विज्ञानवादियों की।

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