चातुर्मास में मंगल-कलश की स्थापना का क्या उद्देश्य है?

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शंका

चातुर्मास में मंगल-कलश की स्थापना का क्या उद्देश्य है?

समाधान

कलश को अचित्त्य मंगल में एक मुख्य मांगलिक माना गया है। इसकी स्थापना की परंपरा बहुत प्राचीन रही है जो मांगलिक निमित्तों में कलश स्थापित किया जाता रहा है। 

परंतु चातुर्मास मुनियों का होता है, मुनियों के पास कलश कहां? वो कहां से कलश स्थापना करेंगे, वे वनों में अपना चातुर्मास बिताते थे और उनका चातुर्मास निर्बाध रूप से संपन्न हो जाता था। लेकिन जब मुनियों का श्रावकों के साथ जुड़ाव हुआ, वर्तमान में श्रावकगण शहरों में ही रहते हैं, बड़ी बस्तियों में रहते हैं, साधुजन का सानिध्य समागम मिलता है, तो चातुर्मास साधुओं की साधना का योग होने के साथ-साथ श्रावको में भी प्रभावना का निमित्त बन जाता है। चातुर्मास के निमित्त से पूरे चार माह एक उत्सव जैसा वातावरण बना रहता है। श्रावक उसमें शामिल हो और इस चातुर्मास में सर्वत्र मंगल हो, इस मनोभाव से मंगल कलश की स्थापना की जाती ।

मंगल कलश की स्थापना के पीछे की भावना यह रहती है कि जिसके हाथों से कलश की स्थापना की गई, पूरे चातुर्मास की जो प्रभावना है, उसका श्रेय उसके माथे जाता है क्योंकि उसके निमित्त हुआ। इस चातुर्मास में जितने लोगों ने धर्म आराधना की, जितने लोगों के अंदर धर्म की प्रभावना हुई, उन्होंने जितना सत्कार किया, जितना पुण्य उपार्जन का कार्य किया, उसका एक बड़ा हिस्सा उस व्यक्ति के सिर पर जाता है जिस के निमित्त से सारी चीजें होती है। तब से एक परीपाटी चल पड़ी और श्रावक लोग आज कलश स्थापना में अपनी महती भूमिका रखते हैं। 

यह श्रावकों की स्थापना है, मुनि महाराज तो संकल्प से बंध गये, तुम कैसे बंधोगे? कलश रखकर के श्रावक और समाज बन्धती है। जिससे धर्म प्रभावना का एक वातावरण बनता है।

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