सास-बहू का रिश्ता कैसा हो?

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शंका

हर माँ अपनी बेटी के लिए ऐसा सोचती है कि उसको बहुत अच्छा ससुराल मिले और हर सास उसको अपनी बेटी बना कर रखे। लेकिन जब उसी के घर में किसी की बेटी बहू बन के आती है, तो उसका हृदय परिवर्तन हो जाता है और वह उसको बेटी नहीं समझना चाहती, उसको बहू ही समझती है। हर सास को ऐसा क्या करना चाहिए कि वह माँ बन जाए और हर बहू को ऐसा क्या करना चाहिए कि वह बेटी बन जाए?

समाधान

सास को चाहिए कि अपनी बहू को इतना प्यार दें कि अपने मायके का फोन नंबर भी भूल जाए; और बहू को चाहिए कि अपनी सास को इतना बहुमान दे की दूर बैठी हुई अपनी बेटी का नाम भी भूल जाए। तब देखो जीवन में क्या होता है!

सास को  कैसा होना चाहिए? एक मुंबई की संभ्रांत परिवार की महिला बाजार में साड़ी खरीदने के लिए गई। जिस दुकान में साड़ी खरीदने के लिए गई, वहाँ कुछ महंगी साड़ियाँ थी, वह कुछ कम दाम की साड़ियाँ लेना चाहती थी। दुकानदार उनके status को जानता था। उसने कहा “बहनजी! २ दिन बाद और माल आने वाला है, आप आइएगा, साड़ी ले लीजिएगा और अब की बार अपनी मम्मीजी के साथ आइएगा।” ठीक २ दिन बाद वह अपनी सास के साथ उसी दुकान में गई। बहनजी ने ₹८०० की साड़ियाँ पसंद की। सास ने कहा “नहीं आप और अच्छी साड़ियाँ दिखाओ।” दुकानदार ने साड़ियाँ दिखाईं और उन्होंने ५००० की साड़ियाँ पसंद की और कहा “आप इन ३ साड़ियों को पैक कर दीजिए।” बहू ने बीच में कहा की “माँ, इतनी महंगी साड़ियों की क्या जरूरत? मुझे तो घर में पहनने के लिए साड़ियाँ चाहिए।” सास ने कहा “बेटी, मैं चाहती हूँ कि तू घर में भी अच्छी साड़ी पहन। अपने पास क्या कमी है, मेरा बेटा कमाता है, भरपूर देता है, तो मैं चाहती हूँ कि तू घर में भी अच्छी साड़ी पहन। जब अपने पास पैसा है, तो उसका अभी उपयोग नहीं करेंगे तो कब करेंगे? तो पहन, मत सोच।” “मगर माँ यह तो बहुत महंगी है।” “महंगी सस्ती की बात मत कर। अगर तू चाहे तो मैं और इससे भी महंगी देने की बात कर सकती हूँ, लेकिन ऐसी साड़ी पहन। जब तुम महंगी साड़ी पहनती है ना तो मुझे बहुत खुशी और प्रसन्नता होती है, तो ऐसे ही पहन।” जिस दिन सास के अंदर ऐसी उदारता आ जाएगी, उसकी बहू उसके पाँव धोकर पीने को तत्पर हो जाएगी, आतुर हो जाएगी। ऐसा प्रयास होना चाहिए।

बहू कैसी होनी चाहिए? एक युवक बड़ा उद्यमी था और उसने भारत से बाहर जाकर ८ दिन घूमने का कार्यक्रम बनाया। अपनी पत्नी की भी टिकट बनवा ली। पत्नी से जब उसने कार्यक्रम बताया तो उसने कहा “मैं नहीं जा सकती। माँ जी बीमार है और उस समय उनकी स्थिति ठीक नहीं है। हमें उनके साथ रहने की आवश्यक है।” पति ने कहा “ठीक है, घर में और लोग हैं, नर्स है, नौकर है, क्या दिक्कत है? तुम चलो।” बोली- “नहीं! मैं नहीं चल सकती।” पति ने कहा “अभी तो अपने घूमने-फिरने के दिन हैं, तुम चलो ना मेरे साथ।” पत्नी ने कहा “नहीं, आप मुझे माफ करें। इस घड़ी में हमें घूमने फिरने से ज्यादा माँ जी की सेवा करने की जरूरत है। आप जाइए घूमिये-फिरिये, अपना Business trip कीजिए और मुझे माँ की सेवा में लगे रहने दीजिए। माँ की सेवा के दिन हमें थोड़े मिले हैं। व्यापार करने और घूमने के लिए तो पूरी जिंदगी मिली है। मैं माँ की सेवा करके ही कृतार्थ रहूँगी।” जिस बहू में ऐसी भावना हो जाएगी वह बहू अपनी सास को माँ ज़रुर बना लेगी। बस यह दोनों स्थितियाँ बने तो यह सारी दुविधाएँ खत्म! लेकिन क्या बताऊँ? यह सब बातें केवल प्रवचनों में ही दिखाई ज्यादा पड़ती है।

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