अमीर या गरीब होने के कारण एवं उसे दूर करने का उपाय

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शंका

अमीर या गरीब होने के कारण एवं उसे दूर करने का उपाय

समाधान

देखिए अमीर और गरीब! जब तक ये 2 शब्द है, तब तक भेद बना रहेगा। अमीर हम उसको ही कहते हैं जो सर्व साधन संपन्न हैं और गरीब उसको कहते हैं, जो अपेक्षाकृत साधन हीन है। तो जब तक यह दो शब्द है तब तक अमीरी और गरीबी बनी रहेगी और समाज की मानसिकता भी ऐसी ही बनी रहेगी; यह हमेशा से रही है, आज से नहीं, हर युग में रही है। कोई राजा रहा है, तो कोई रंक रहा है; और राजा का मूल्य तभी है जब कहीं कोई रंक है। कोई पहाड़ तभी खड़ा होता है जब बगल में कोई खाई होती है। यह एक व्यवस्था है, इस अमीरी और गरीबी की दूरी को पाटना मेरे बस की बात नहीं है। यह तो हमारे देश के कर्णधारों की नीतियों के ऊपर निर्भर करता है, जहां इस तरह की कोई व्यवस्था बनाई जा सके। किंतु साम्यवाद का खूब प्रयोग करने के बाद वे लोग भी असफल हो गए हैं, उन्हें भी समाजवादी व्यवस्था के ओर मुड़ना पड़ा। रूस एवं चीन जैसे देश आज पिछड़ रहे हैं, चीन में वापस पूंजीवाद की व्यवस्था बन गई है; तो मैं आप से कहता हूं बाहर की अमीरी और गरीबी को मिटाने का मेरे पास कोई उपाय नहीं है किंतु भीतर की अमीरी और गरीबी के भेद को मिटाना चाहो तो उसका उपाय हमारे पास है। धर्म उसी के लिए हम सब को प्रेरित करता है; वैसी ही प्रेरणा देता है कि अपनी भीतरी अमीरी और गरीबी के भेद को मिटाओ। अध्यात्म की दृष्टि से, गरीब वह नहीं जो साधन हीन है और अमीर वह नहीं जो साधन संपन्न है। गरीब कौन है?

कोही दरिद्रो? यस्य तृष्णा विशाला!

जिसके अंदर जितनी अधिक तृष्णा है, आसक्ति है, वह उतना ही बड़ा गरीब है, वह उतना ही बड़ा दरिद्र है। तो धर्म कहता है अपनी तृष्णा और आसक्ति को खत्म करो।

 अगर तुम्हारे अंदर तृष्णा है, तो अगर तुम अमीर भी हो तब भी तुम गरीब हो! ध्यान रखो ! भूखा कौन हैवह व्यक्ति जिसके पास खाने के लिए कुछ नहीं है और खाने की इच्छा ना होयावह व्यक्ति जिसने दो लड्डू खा लिए, दो थाली में है, फिर भी बगल वाली की थाली पर अपनी नजर गड़ाए हुए हैं कि वह भी मेरी थाली में जाए! कौन है भूखा? पहले वाला या दूसरा वाला ? तो बस धर्म कहता है बाहर से आदमी चाहे कितना भी साधन संपन्न क्यों ना हो, उसके अंदर की आसक्ति नष्ट नहीं होती तो इंसान बहुत ही गरीब है। इस गरीबी को खत्म करने का प्रयास होना चाहिए और धर्म इसी गरीबी को मिटाने की प्रेरणा देता है।

अनासक्ति मूलक जीवन जियो अपने अंदर की लालसा को नियंत्रित करो और एक दिन सब कुछ छोड़ कर आत्म केंद्रित हो जाओ। अकिंचन बन करके भी तुम सम्राट बन जाओगे यह धर्म की महिमा है। धर्म कहता है कि-“किसको पूजा जाता है?” हमारे देश में राजाओं महाराजाओं को नहीं पूजा गया, जिनके पास अकूत संपदा रही; हमारे देश में पूजा गया है ऋषियों को, मुनियों को, संतो को! एक दिगंबर साधु अकिंचान है, उनके पास कुछ नहीं है, फिर भी सम्राट उनके चरणों में, चक्रवर्ती सम्राट जैसे भी उनके चरणों में अपना शीश झुकाते हैं क्योंकि वह गरीब है और ये अमीर हैं और इस भूमिका में जो गया सब बराबर है। जिसने अपने आप को पा लिया जिसने अपने अंदर के वैभव को उजागर कर लिया वह धन्य है।

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