केशलोंच पीड़ा नहीं, आत्मनिर्भरता और अहिंसा का अनुपालन है!

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शंका

केशलोंच पीड़ा नहीं, आत्मनिर्भरता और अहिंसा का अनुपालन है!

समाधान

केशलोंच की क्रिया ऊपर से देखने में ऐसी लगती है, जैसे अपने शरीर को बहुत ज्यादा कष्ट पहुँचाया जा रहा है, पीड़ित किया जा रहा है। लेकिन ऐसा कुछ नहीं है, कष्ट तभी होता है जब हम कष्ट की अनुभूति करें। लोक में बहुत सारे लोग हैं जो अपने जीवन को बड़े-बड़े जोखिम में डालते हैं और जीवन में बड़ी बड़ी उपलब्धियाँ अर्जित करते हैं। जितने भी जोखिम से भरे (adventurous) कृत्य होते हैं, उसमें तो बहुत सारे कष्ट होते हैं, देखने वाले को डर लगता है, कष्ट भी होता है। लेकिन करने वाले को आनन्द आता है। केशलोंच हम लोगों की एक अन्तर्साधना है, जिसमें अल्प पीड़ा है। यह ऐसी पीड़ा नहीं जिससे कि शरीर बीमार हो जाए; ऐसी पीड़ा नहीं जिससे शरीर पर कोई दुर्बलता हावी हो जाए। एक ऐसी पीड़ा है, जिसे आसानी से सहा जा सके और अपने भेद-विज्ञान को मजबूत किया जा सके। वह भी पीड़ा उनको लगती है जो इस तत्त्व को समझते नहीं है। 

हमने एक बार केशलोंच किया, एक युवक ने कहा कि “महाराज जी! आप केशलोंच कर रहे हैं, आप को कष्ट नहीं हो रहा है?” हमने बोला “नहीं”। वो बोला – “आप तो बिल्कुल आराम से केशलोंच कर रहे थे।” हम बोले – “हाँ!” वो बोला – “हम लोगों को तो बहुत दर्द हो रहा था”। हम बोले – “केशलोंच तो हम कर रहे थे, दर्द तुम्हें क्यों हो रहा था?” दर्द तो हमारी एक अनुभूति है। यदि हम करें, तो हमें हर पीड़ा में कष्ट होगा और अगर अनुभूति न करें तो बड़े-बड़े कष्ट में भी कोई पीड़ा नहीं होगी। 

केशलोंच शरीर को पीड़ा देने के लिए नहीं किया जाता, केशलोंच आत्मनिर्भरता और अहिंसा के अनुपालन के लिए किया जाता है। बालों को बड़ा भी रख सकते हैं लेकिन जैसे ही बालों को हम बड़ा करेंगे, उसमें जुएँ, लीखें आदि न जाने कौन-कौन से प्राणी हो जाएँगे! उनकी हिंसा से हम अपने आप को बचा नहीं पाएँगे। इसलिए बालों को बढ़ाना हमारे यहाँ विधेय नहीं है। तो फिर क्या करें? कटवाएँ? फिर कटवाने के लिए किसी पर निर्भर होना होगा। पैसा आएगा तो वह भी ठीक नहीं है। तो क्या करें? अपने भेद विज्ञान को पुष्ट करने के लिए, अपने मार्ग के प्रति अपनी दृढ़ता को मजबूत बनाए रखने के लिए, अपने हाथों से उखाड़ फेंको। 

केशलोंच एक बड़ी सहज क्रिया है, जब तक आप उसे स्वीकार न करो तब तक आप को कष्टकारी लगता है, जब आप करने लगें तो वही आपके लिए बहुत आनन्द दायी होता है। आप देखिए, जीवन में बहुत सारी कष्टकारी क्रियाएँ होती हैं, एक सेना (military)के जवान को भी, training (प्रशिक्षण) के दौर में कितना कष्ट उठाना पड़ता है! कितनी लम्बी-लम्बी दौड़ करनी पड़ती है! कितना वजन उठाना पड़ता है! कई – कई दिन तक उन्हें भूखे – प्यासे रहना पड़ता है, और शून्य से नीचे तापमान में रहना पड़ता है। लेकिन यह सब क्या है? हमें आपको कष्ट दिखता है, पर उनके लिए वो उनका कर्तव्य है, वो उनकी तपस्या है, वो उनकी साधना है और तभी हम सुरक्षित हैं और वे बड़े उत्साह के साथ इसको करते हैं। इसी तरह जिस कष्ट को हम स्वीकार कर लेते हैं, वो कष्ट कभी कष्ट प्रतीत नहीं होता।

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