बोलियाँ समर्थ लोग ही लेते हैं, बाकी लोग क्या करें?

150 150 admin
शंका

आज दिगम्बर जैन समुदाय की जनसंख्या (population) में आर्थिक स्तर पर ३० प्रतिशत लोग ही जो well-to-do family (संपन्न परिवारों) से होंगे। बाकी ७० प्रतिशत मध्यम वर्गीय या कमजोर वर्ग के होंगे। क्षेत्रों पर पंचकल्याणक महोत्सव को छोड़ दिया जाए, तो बाकी के मन्दिरों में नित्य पूजन, अभिषेक की जो क्रियाएँ होती है, उनमें बोली लगाने का जो पैटर्न है, उसमें मध्यम वर्गीय और कमजोर वर्ग के जैन लोग इस लाभ से हमेशा के लिए वंचित हो जाते हैं?

समाधान

ऐसा नहीं है कि वंचित हैं। हर जगह इस तरह का प्रावधान होना चाहिए। मन्दिरों में आप लोगों के दिए गये दान से ही व्यवस्थाएँ होती हैं, और ये बोली के माध्यम से दान आता है। ये आपके लिए कल्याण का ही कारण है। कई बार लोग ये कहते हैं, कि बोली केवल बड़े लोग ही लेते हैं। मेरा ऐसा अनुभव नहीं है। मैंने ऐसा पाया है कि छोटे लोग बोली ले जाते हैं, और बड़े लोग देखते रहते हैं। बोली भावना से ली जाती है पैसों से नहीं ली जाती है। 

सब को chance (अवसर) मिले इस बात का ध्यान रखना चाहिए। कुछ व्यवस्थाएँ ऐसी भी बना देनी चाहिए कि अल्प सामर्थ्य वाले व्यक्ति को भी अवसर मिले। प्रत्येक व्यक्ति को, चाहे वो कितना भी सामर्थ्यहीन क्यों न हो, अपनी शक्ति के अनुरूप भगवान के नाम पर जितना उत्कृष्ट लगा सके, लगाना चाहिए। यही तुम्हारा उद्धार करेगा। 

आज लोग ३-४ हजार का गुटखा खाकर, थूक देने को तैयार हैं। भगवान की पूजा अर्चा के लिए पाँच सौ रुपये निकालना उन्हें भारी पड़ता है। ये गलत बात है। उनको भी कुछ अपना दान देना चाहिए, चाहे कितना भी गरीब हो। एक आदमी मजदूरी करता था, मजदूरी यानि ‘पल्लेदारी’ और वो व्यक्ति इतना धर्मनिष्ठ व्यक्ति था कि मन्दिर में कभी भी अनन्तचौदस आदि पर बोली हो तो हजार-पाँच सौ की बोली ले लेता था। आज उसकी स्थिति ये है कि वो बहुत बड़े गल्ले का व्यापारी बन गया। परिवर्तन ऐसा होता है 

“दानम् दुर्गति नाशनम्”। 

तुमने कभी दान नहीं दिया इसलिए तो दरिद्र बने, और अभी भी दरिद्रता तुम्हारी बनी रहेगी यदि दान देने का मनोभाव नहीं होगा। इसलिए मैं सामर्थ्य हीन लोगों से ये कहना चाहता हूँ कि यदि तुम अपनी शक्ति के अनुरूप न ले पाओ तो जिन्हें देने का अवसर मिला है उनकी खूब मन से अनुमोदना करो। और अन्दर से प्रफुल्लित हो खुश हो कि आज हमने कितना अच्छा दान दिया। तुम अनुमोदना के द्वारा भी ये पुण्य पा लोगे। और जो समाज के समर्थ लोग हैं यदि बढ़ चढ़ कर कोई शुभ अवसर प्राप्त करते है, तो अपने साथ अल्प समर्थ व्यक्ति को शामिल कर लो। ‘आओ शांति धारा करना है, मैंने लिया मेरे साथ तुम शामिल हो जाओ, तो उनका भी काम होगा।

Share

Leave a Reply