जैन नहीं, फिर भी जैन तीर्थ वंदना का सौभाग्य कैसे मिला?

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शंका

मेरे मन में ४५ साल से हर दिन उथल-पुथल रहती है कि “मैं अजैन होते हुए भी मांसाहार से कैसे बच गया”? दूसरी बात, मैंने सारे जैन समाज के तीर्थों की बड़े भावों सहित वन्दन करी है, ऐसी कि ६ महीने तक में यात्रा में रहा। एक लोहाडिया परिवार के साथ यात्रा की, उनका शूद्र जल का त्याग था। हमने पूछा ‘क्या काम है?’, उन्होंने कहा कि ‘तुम हमारे कपड़े धो देना और हमारे बर्तन साफ कर देना।’ मैंने कहा, ‘मैं बिल्कुल तैयार हूँ।’ मैंने बड़े चाव से काम किया, मुझे ज़ोर भी नहीं आया, बड़ा आनंद आया और भाव सहित यात्रा पूरी की। मुझे इसका अगले जन्म में क्या फल मिलेगा और मेरे साथ ऐसा कैसे हो गया?

समाधान

आपने बहुत गम्भीर प्रश्न किया है निश्चयतया कहीं कुछ पुण्य क्षीण रहा कि तुम जैन कुल में जन्म नहीं ले पाए लेकिन इसके साथ तुमने पिछले जन्म में जैन धर्म की कहीं ना कहीं से सेवा की होगी या जैन धर्म की अनुमोदना की होगी इसका यह सुपरिणाम है कि जैन कुल में जन्म न लेने के बाद भी तुम्हें जैनों का सानिध्य मिला, जैनों का प्रेम मिला और जैन धर्म के प्रति तुम्हारे मन में श्रद्धा जगी। यह तुम्हारे पिछले जन्म में जैन धर्म की अप्रत्यक्ष सेवा का फल है इस जीवन में जो जैन धर्म का तुम पालन कर रहे हो, श्रद्धा से पालते रहो अगले जन्म में जैन ही नहीं; जिन बनने का भी सौभाग्य प्राप्त कर सकते हो

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