सार्वजनिक स्थलों पर अनधिकृत रूप से मंदिर का निर्माण ठीक नहीं!

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शंका

वर्तमान में अन्य समाज की तरह, जैन समाज के कुछ लोग पार्क और अन्य सार्वजनिक स्थल पर अतिक्रमण करके जैन मन्दिर का निर्माण करवा रहे हैं। यह कहाँ तक उचित है और कितना उचित है? क्योंकि हमारे जैन शास्त्र के अनुसार पाँच महाव्रत बताए गए हैं, इनमें अचौर्य भी एक है। ऐसे में हम श्रावकों को क्या करना चाहिए, शंका का समाधान करें?

समाधान

अतिक्रमण करके मन्दिर बनाना उचित नहीं है। क्योंकि जिन सिद्धान्तों की हम पूजा करते हैं उन्हीं की हत्या करके मन्दिर बनाएं, यह ठीक नहीं। किन्तु कई बार ऐसी बातें आई हैं मेरे सामने।

एक बार मेरे सामने भोपाल में सवाल आया तो एक सज्जन ने कहा- “महाराज जी! सरकारी प्रक्रियाएँ इतनी जटिल हैं कि जब हम मन्त्रियों से एवं अन्य जनों से बात करते हैं तो बड़ी दिक्कत होती है। वे कहते हैं ‘कानूनी प्रक्रियाएँ जटिल हैं, हम दे नहीं सकते तुम ले लो, अनधिकृत रूप से।” एक व्यक्ति ने एक उदाहरण दिया कि ‘जहाँ हमने एक प्लाट खरीदकर के लिया, वहाँ आज तक मन्दिर नहीं बना पाए और जहाँ सरकार के लोगों से मिलजुल कर के किया वहाँ आज मन्दिर बन गए।’ उनका तर्क अपनी जगह था पर मैं इससे सहमत नहीं हूँ।

हमें जहाँ भी मन्दिर का निर्माण कराना है, विधिवत् भूमि क्रय करके ही करना चाहिए, वही सच्चा मार्ग है। सरकार से इसकी अनुमति लेनी चाहिए।

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