जैन धर्म को जानें!

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शंका

जैन धर्म को जानें!

समाधान

यह उनका दोष नहीं, दोष उनकी अज्ञानता का है। इस बच्चे ने बहुत गंभीर प्रश्न किया है। 

मैं कहना चाहता हूँ कि हर पेरेंट्स को, हर बच्चे को इस विषय में aware (जानकारी) होने की जरूरत है। जैन धर्म की वास्तविक जानकारी ना हो पाने के कारण लोग जैन धर्म को गलत तरीके से प्रस्तुत करते हैं। जैसे, “जैन धर्म एक कठोर साधना है, जैनियों में बड़ी कठोरता है, जैन लोग orthodox (रूढ़िवादी) होते हैं”, ऐसी बात की जाती हैं और जैन धर्म के अनुसार दिगंबर मुनि की चर्या को कई लोग समझ नहीं पाते। इसके लिये सबसे पहली जरूरत है कि हम अपने बच्चों को इस बात को ठीक ढंग से समझायें। दरअसल जैन धर्म है क्या? और जैन मुनि यदि दिगम्बर हैं तो उनके दिगम्बर होने का आशय क्या है?, वह लज्जा की बात है या गौरव की बात? इसे समझायें। सबसे पहले जैन धर्म के विषय में आपको बहुत अच्छे से जानने की जरूरत है। 

आप के सामने जब कभी जैन धर्म की बात आये तो उनको कहें कि जैन धर्म एक कठोर धर्म नहीं, जैन धर्म एक ऐसा वैज्ञानिक धर्म है जो हमें सन्तुलित जीवन जीने की जीवन शैली बताता है। एक ऐसा धर्म है, ‘जो जियो और जीने दो’ का मार्ग बताता है, जो हमको selfish (स्वार्थी) होने से बचाता है, जो हमें aggresive (आक्रामक) होने से बचाता है, जो हमें शांत, संयत और संतुलित जीवन जीने की प्रेरणा देता है। हम उन्हें बतायें कि एक जैन जितना अच्छा जीवन जी सकता है उतना अच्छा जीवन कोई नहीं जी सकता। यह सीख हम अपने बच्चों को दें।

जॉर्ज बर्नार्ड शा (George Bernard Shaw), जो आयरलैंड का एक बहुत बड़ा दार्शनिक विद्वान था, उसको जब जैन ग्रन्थ दिए गए, वह पूरा शाकाहारी तो था ही, उसने रात्रि भोजन का भी त्याग कर दिया। और तुषार गांधी जो गांधीजी के पौत्र थे, उन्होंने उनसे कोई इंटरव्यू लिया था। इस इंटरव्यू में उन्होंने जो एक बात कही वह प्रत्येक जैनी के लिये बहुत गर्व की बात है। जॉर्ज बर्नार्ड शा ने कहा था कि “if there is rebirth, I wish to be born in Jain family.” (यदि पुनर्जन्म होता है, तो मैं एक जैन परिवार में जन्म लेना चाहूंगा) जॉर्ज बर्नार्ड शा जैन धर्म से इतने प्रभावित थे। इसलिये आप जैन धर्म की बातें बतायें। 

जैन धर्म है क्या: किसी को मारो मत, कहीं झूठ मत बोलो, किसी की चोरी मत करो और खोटा आचरण मत करो, संतोष से जियो। इससे अच्छा जीने का तरीका और किस में होगा? इसी सिद्धांत के कारण तो जैन लोग आज समाज में आदर पाते हैं और बड़े-बड़े संगीन अपराधों में जैनों का स्थान नहीं हैं। मैं कोलकाता में था, तो वहाँ डॉक्टर अनेकांत जैन पर्यूषण में प्रवचन के लिये आये, उन्होंने कहा कि “महाराज, मैं एक कार्यक्रम में आया था और उस कार्यक्रम में भारत के प्रधान न्यायाधीश भी शामिल हुये। उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि विभिन्न तबके के लोग आतंकवादी बने, पर बड़े गर्व के साथ उस भारत के प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि जैन कभी आतंकवादी नहीं बन सकता क्योंकि जैन धर्म जियो और जीने दो का सिद्धांत बताता है।”

यह कमज़ोरी आपकी है कि आप अपने बच्चों को जैनत्व का बोध नहीं कराते। पहली बात, बच्चों को जैनत्व का बोध करायें। पर कब करायें?, आपको खुद को बोध हो तब तो! बच्चा होश नहीं संभालता, आप उसे कान्वेंट में भेज देते हो और दिन भर उसको busy (व्यस्त) रखते हो ताकि आप easy (आराम से) बने रहो! यह क्या तरीका है? उन्हें सिखायें, चार बातें सिखायें, जिससे उसकी जैन धर्म के प्रति निष्ठा गहरी हो। उस बच्चे ने मुझे अभी कमरे में पूछा, तो मैंने कहा यह प्रश्न तुम मंच पर करना क्योंकि यह तुम्हारी वेदना नहीं तुम्हारे जैसे अनेक जैन बच्चों की वेदना होगी, जिनकी बात सुनकर जैन बच्चे यदि जैन धर्म से विमुख होने की बातें करने लगें तो बहुत चिंतनीय बात है। हमें इसके प्रति जागरूक होना होगा।

रही बात, दिगंबर मुनि होने की! तो हमें यह बताना चाहिये कि जैन मुनि दिगंबर हैं, नग्न नहीं। नग्न होना और बात है और दिगंबर होना और बात है। उन्हें समझाओ कि नग्न तो भोगी विलासी होता है, नग्न कोई भी हो सकता है, दिगम्बर हर कोई नहीं हो सकता। 

मैं एक बार बंगाल में विहार कर रहा था, बांग्लादेश की सीमा से गुज़र रहा था। एक पत्रकार मेरे पास आया, उसने पूछा “आप नग्न क्यों हैं।” मैंने कहा, “किसने कहा मैं नग्न हूँ? मैं तो दिगंबर हूँ।” बोला, “आपने कोई कपड़े नहीं पहनें।” हमने कहा, “कपड़ा न पहनने वाला नग्न हो यह कोई जरूरी नहीं। मैं दिगंबर हूँ।” बोले, “नग्न और दिगम्बर में क्या अन्तर है?” “बहुत अन्तर है, आपने धागों के कपड़े पहन लिये और मैंने आकाश को, दिशाओं को अपना वस्त्र बना लिया। हममें और आप में अन्तर क्या? दिगम्बर जो दिशाओं को अपना वस्त्र बनाए। नग्न व्यक्ति कभी निर्विकार नहीं होता और दिगम्बर के मन में कभी विकार नहीं आते, यह दोनों में अन्तर है।” उन्हें समझायें कि नग्न होना अलग बात है और दिगम्बर होना अलग बात है, दोनों में बहुत अन्तर है। 

चारित्र चक्रवर्ती आचार्य शान्तिसागरजी महाराज जब दक्षिण भारत से उत्तर भारत की ओर आ रहे थे, तो उनसे लोगों ने कहा कि “महाराज उत्तर भारत के लोग बड़े कुटिल हैं। आपको तकलीफ़ होगी, आप कोई मंत्र सिद्ध करके जायें।” तो उन्होंने कहा “जिस साधु परमेष्ठी को लोग णमोकार मंत्र से जपते हैं और अपना अनिष्ट अमंगल टालते हैं, वह साधु अपने अनिष्ट को टालने के लिये कोई मंत्र सिद्ध करे, मुझे यह समझ में नहीं आता।” वह बिना मंत्र सिद्धि के निकले और जब हैदराबाद की सीमा में पहुँचे तो वहाँ के निजाम की तरफ से उनके विचरण पर रोक थी और यह कह दिया गया कि हमारे राज्य की सीमा में किसी नग्न आदमी को प्रवेश नहीं मिलेगा। सर सेठ हुकुमचंद जी जैन, जो इंदौर में उस समय जैन समाज के एक बहुत बड़े स्तम्भ थे, नेता थे, उनको मालूम पड़ा तो उन्होंने जाकर हैदराबाद के निजाम को सारी वस्तुस्थिति से अवगत कराया और उनको अवगत कराने के बाद जब उन्होंने बताया कि यह महाराज का स्वरूप है, यह चर्या है, तो हैदराबाद के निजाम ने कहा “ठीक है! महाराज आयेंंगे और मैं खुद उनका स्वागत करूँगा, मेरी बेगम उनका स्वागत करेगी।” हैदराबाद की सीमा में पहुँचने के बाद, हैदराबाद निजाम ने खुद अपनी बेगम के साथ उनकी आरती उतारी और जब वहाँ के तथाकथित धार्मिकों ने, धार्मिक संस्थाओं के प्रमुखों ने इस पर आपत्ति की तो हैदराबाद के निजाम ने कहा कि “हमारे रियासत में नंगों के विचरण पर प्रतिबंध है फरिश्तों के विचरण पर नहीं।” तो यह बात हमें बच्चों को समझाने की जरूरत है कि दिगम्बर होने का मतलब क्या है। 

एक बार मुझसे किसी ने मुझसे कहा, “महाराज, आज आप नग्न क्यों हैं?” मैंने कहा, “आपने कपड़े क्यों पहने?” क्योंकि आपके पास कुछ है जिसे आप छुपाना चाहते हो, वह लज्जा है, वह आपका विकार है। आपके अंदर विकार है, आपके अंदर लज्जा है, उसे ढँकने के लिये आपको कपड़े पहनना पड़ता है। हमारे अंदर विकार नहीं और विकार नहीं तो, तत्जन्य लज्जा नहीं; इसलिये हमें कुछ ढाँकने की जरूरत ही नहीं। यह प्रकृति का सर्वश्रेष्ठ रूप है।” गांधी जी ने लिखा है कि दिगम्बरत्व मनुष्य का आदर्श रूप है, तो उन्हें यह बातें बताना चाहिये।

अपने बच्चों को यह सिखाना चाहिये कि दिगम्बर मुनि केवल वस्त्रविहीन नहीं होते बल्कि उनकी जो चर्या है वह चर्या उन्हें धरती का भगवान बना देती है। वह चर्या कितनी उत्कृष्ट चर्या! जैन साधना जितनी उत्कृष्ट है और जैन साधु की चर्या जितनी निर्मल है, आज भारत में किसी की नहीं। हम लोग अमरकंटक गए, सन १९९४ (1994) की बात, आचार्य गुरुदेव के आगवानी के लिये अमरकंटक के सारे सन्त आये। १५ जनवरी का दिन था, हिल स्टेशन है, नीचे बादल ऊपर हम लोग चल रहे थे और वहाँ के साधु लोग ओवरकोट पहनकर आगवानी करने आये थे। वहाँ आकर के उन्होंने देखा कि यह एकदम कुछ नहीं, बिना चटाई के, हमारे संघ में ज्यादातर मुनिराज चटाई नहीं ओढ़ते, और कड़कड़ाती ठंड में, उन दिनों मैं भी गुरु चरणों में ही था। दूसरे दिन सुबह ७:४५ बजे कार की बोनट पर आधा इंच की ice (बर्फ़) की परत जमी हुई थी, इतनी कड़कड़ाती ठंड थी। लोग रात में देखने आये –  ‘कहीं कोई आग तो नहीं तापते, कम्बल तो नहीं ओढ़ते’, खुला दरबार आकर देख लो जिसको देख लो!

वहाँ एक सिद्धचक्र विधान का कार्यक्रम हुआ, जिसमें १००८ जोड़े बैठे थे और उस सभा में वहाँ के कल्याण बाबा, मौनी बाबा और सुखदेवानन्द सरस्वती, तीन बड़े साधु आये। उन तीनों के जो statement (वक्तव्य) थे मैं आपको कहना चाहूँगा। कल्याण बाबा ने कहा कि “आप ने भगवान के दर्शन किये या न किये हों पर,” आचार्य श्री की ओर उन्मुख होकर के कहा “यह जो जीवित भगवान बैठे हैं इनका दर्शन विरलों को ही मिलता है।” उन्होंने आगे जोड़ा कि “त्याग और तपस्या की जो मूरत दिखाई पड़ती है वह केवल दिगम्बर सन्तो में ही दिखाई पड़ती है।” सुखदेवानन्द सरस्वती ने कहा कि “आज अगर साधना का असली रूप दिखता है, तो केवल दिगम्बर संतों में ही दिखता है”; और मौनी बाबा, जो वहाँ के एक प्रतिष्ठित बाबा थे उन्होंने कहा कि “संसार में कई सागर है, सब खारे हैं, पर विद्यासागर बहुत मीठा है”, यह अभिव्यक्ति है। हम जानें दिगम्बर साधु का रूप क्या है। 

आज हमारे बच्चों के मन में छवि क्या है? ‘मुनि महाराज के पास जाओ, वह कोई तुमको जबरदस्ती संयम दे देंगे, नियम दे देंगे।’ अरे! मुनि महाराज है क्या? यह तो बताओ! २४ घंटे में एक बार भोजन पानी करना कोई सामान्य नहीं, आज की युग में आश्चर्य की बात है! 

सन १९८४ (1984) में मढ़ियाजी में चातुर्मास था। इंदिरा गांधी हत्याकांड के कारण पूरे के पूरे जबलपुर में उबाल था और उस शहर को सेना के हवाले कर दिया गया था और वहाँ नागा रेजिमेंट के लोग थे। मढ़ियाजी तक उसकी सीमा थी और वहाँ के पूरे लेफ्टिनेंट जनरल से लेकर सेना के जितने भी अधिकारी थे, संघ के दर्शन करने आते थे। और जब उनको मालूम पड़ा कि यह २४ घंटे में एक ही बार भोजन और पानी लेते हैं, तो उनके मुख से पहला प्रश्न आश्चर्य पूर्वक निकला कि “यदि २४ घंटे में एक बार भोजन पानी लेते हैं तो जिंदा कैसे हैं?” २४ घंटे में एक बार पानी लेना, एक बार भोजन लेना, हमेशा पैदल बिहार करना, किसी जूते चप्पल का उपयोग नहीं करना, सर्दी गर्मी बरसात में ऐसे निरावरण रहना, आधुनिक सुख सुविधाओं से दूर रहना, कोई हँसी खेल की बात है? अपने हाथों से केशलोंच करना, कभी किसी से किसी को श्राप नहीं देना, किसी से प्रसन्न होकर वरदान नहीं देना, निंदा करने वाले पर और उपसर्ग करने वाले पर सम दृष्टि रखना, धरती पर भगवान का ही रूप हो सकता है, यह बात बच्चों को बताना चाहिये। और जब बच्चों के सामने ऐसे प्रश्न आयें तो बच्चों को भी उन्हें बहुत दृढ़ता से बताना चाहिये। और उन्हें एक ही बात करना चाहिये कि “तुम्हारे मन में मुनि महाराज को लेकर जो भी धारणा है, एक बार मेरे साथ हमारे महाराज के पास चलो, फिर आ करके बताना कि तुम किसी नंगे से मिलकर आये या किसी धरती के भगवान से मिलकर आये हो। तुम्हारी धारणा खुद बदल जायेगी।” इसलिये इसमें कुछ भी अश्लीलता की बात नहीं, कुछ भी असंगत बात नहीं, केवल यह अज्ञानता की बात है और उस अज्ञानता का निवारण होना चाहिये!

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