माँ हर समय धर्म से जुड़ी रहती हैं, क्या करूँ?

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शंका

मैं जब भी ऑफिस से घर आता हूँ मेरी माँ पारस चैनल या जिनवाणी चैनल से चिपकी रहती है। रात को आता हूँ तो ऑनलाइन धर्म क्लास करती हैं। मैं अपनी माँ से कब मिल सकता हूँ? कृपया समाधान करें।

समाधान

यह बात बहुत गम्भीर है। एक घटना सुनाता हूँ, मैं एक स्थान पर था, एक महिला थी जिसने अपने पति को खो दिया। अपने पति को खो देने के बाद वह पूरी तरह से धर्म ध्यान में लग गई। धर्म ध्यान में क्या लगी, कुछ जरूरत से ज़्यादा लग गई। उसकी एक शिकायत रहती थी कि मेरे बच्चे मन्दिर नहीं आते। दो बच्चे थे, मन्दिर नहीं जाते थे। बोली-‘महाराज! मैंने सबको सुधार दिया, शिविर लगाए, सब कुछ किया पर मैं अपने घर को नहीं सुधार पाई।’ संयोग से एक दिन उनके घर आहार हुआ। रविवार का दिन था, उनके दोनों बेटे, आहार देख रहे थे। मैंने आहार के बाद अपना कमंडल एक को पकड़वा दिया, अब तो मन्दिर आना ही था, छोड़ने के लिए। आकर बैठा ही नहीं कि माँ टूट पड़ी- ‘महाराज जी! इन लोगों को बोलें कि मन्दिर आएँ।’  मैंने सबको शान्त किया, ‘भाई तुम लोग कुछ मत बोलो, मैं इससे बात करूँगा।’ सब के जाने के बाद मैंने उस बेटे से पूछा ‘तुम लोग मन्दिर से दूर क्यों रहते हो?’ उसने जो बात कही बहुत गम्भीर है। वो बोला- ‘महाराज जी! हमें उस धर्म से एलर्जी है जो हमारी माँ को हमसे छीन ले।’ ‘मतलब?’ ‘महाराज जी, मतलब क्या बताऊँ? पापा चले गए, माँ का आशीर्वाद रहा, हम लोगों ने काम संभाला। पर क्या बताऊँ, माँ उठती है और सवेरे ५ बजे से मन्दिर चली जाती है, १० बजे के पहले घर नहीं लौटती। हम लोग अपना चाय-नाश्ता अपने हाथ से तैयार करके ऑफिस जाते हैं, दुकान जाते हैं और रात को हम लोग जब आते हैं तो भी वह हमें नहीं मिलती ९-९:३० बजे तक मन्दिर से आती है और आकर सो जाती है। अब हमारी माँ हमें मिल ही नहीं पाती, तो लगता है माँ जब इतना धर्म करती है, तो हमको धर्म करने का क्या मतलब? माँ का धर्म थोड़ा कम होता तो हमसे भी मिलने जुलने का टाइम होता।’ इस अनुभव से मुझे लगता है कि जरूरत से ज़्यादा धार्मिकता भी सन्तान को प्रभावित करती है। 

धर्म के प्रति लगाव होना बहुत अच्छी बात है, लेकिन कुछ समय अपने सन्तान को भी देना चाहिए। जिस माँ जी के प्रति बेटे ने यह प्रश्न किया है मैं उनकी माँ को और उन जैसी अन्य माँओं को और पिताओं को मैं सम्बोधन देना चाहूँगा कि वह भी अपना कुछ समय अपने बच्चों के लिए दें, यह भी उनका एक धर्म है ताकि वे अपने मन की व्यथा आपसे कह सकें और आपसे कुछ प्रेरणा पा सकें।

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