हम एक बनें और नेक बनें!

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शंका

जब मिट्टी ने एकता दिखाई तब ईंट बनी; जब ईंटों ने एकता दिखाई तब दीवार बनी; जब दीवारों ने एकता दिखाई तो घर बना। जब बेजान चीजें एक हो सकती है, तो हम इंसान एक क्यों नहीं हो सकते?

समाधान

बेजान चीजों से इंसानों को सीख लेनी चाहिए। जो एक होते हैं वो मजबूत होते हैं, उनका जीवन बनता है। बहुत अच्छी बात कही-ईटों से दीवार बनी और दीवारों से घर बना- यह हमें सोचना है। जब मनुष्य इस वास्तविकता को समझता है, एकता के मूल को आत्मसात करता है, तो आगे बढ़ता है। वस्तुतः मनुष्य को कौन एक नहीं होने देता? उसके भीतर की बुद्धि, बुद्धि मनुष्य को भटकाती है, बुद्धि मनुष्य को भड़काती है। आपने देखा होगा जितने बुद्धिजीवी होते हैं, एक नहीं होते और जो लोग एक होते हैं, बड़ी सहजता से एक हो जाते हैं। ये बढ़ता हुआ शुष्क बुद्धिवाद हमारे समाज को भटका रहा है। हम ऐसे भटकन से अपने आप को बचाएँ और बुद्धि का उतना ही प्रयोग करें, उतना ही इस्तेमाल करें जितना कि उसकी आवश्यकता है, जरूरत से ज़्यादा बुद्धि का प्रयोग करोगे, कहीं के नहीं रहोगे। हम इन जड़ चीजों से सीख ले और ‘एक बनें, नेक बनेंं’ के संदेश को अपने जीवन में आत्मसात करें। 

हम कभी किसी के बीच फूट डालने की कोशिश न करें। मतभेद हो मनभेद न हो – हम कैंची बनने का काम न करें। जहाँ तक बने सुई बनने की कोशिश करें। सुई सीने का काम करती है और कैंची काटने का काम करती है। काटने में जीवन की उपलब्धि नहीं और सीने से बढ़कर और कोई उपलब्धि नहीं इसलिए अपने समय, शक्ति और संसाधन का सदुपयोग करें और सही दिशा में आगे बढ़े।

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