कर्म जड़, पुद्गलिक, अचेतन है फिर भी आत्मा को कैसे प्रभावित करता है?

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शंका

कर्म तो जड़ है, पुद्गलिक है, अचेतन है फिर भी उदय काल में अच्छा-बुरा फल मिलता है। अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियाँ पैदा होती हैं, इसका उदाहरण के साथ आगमानुकूल समाधान दें?

समाधान

कर्म जड़ है लेकिन उसकी जड़ चेतन में जुड़ी हुई है। तो जिस कर्म की सत्ता चेतन से जुड़ी होती है वह आत्मा को प्रभावित किए बिना नहीं रहता। कई बार जड़ वस्तुओं का हमारे चेतना पर प्रभाव दिखता है। एक आदमी शराब पीता है और उसका चित्त मत्त हो जाता है। शराब जड़ है लेकिन उसका असर चेतन पर पड़ रहा है। 

इसी तरह जड़ कर्म भी हमारी आत्मा को बुरी तरह प्रभावित करता है। वह हमारे स्वरूप को विकृत करता है, हमें सुख-दुःख की अनुभूति कराता है। हमारे आचार-विचार को बिगाड़ता है। तो यह कर्म हमारी ज्ञानादिक शक्तियों को रोकता है, यह कर्म की ही परिणति है। आचार्य कुमार स्वामी ने कार्तिकेय अनुप्रेक्षा में बहुत अच्छी बात लिखी है- 

का अपवादि सदी का अपुव्वा दीसदी पुग्गलकम्मस्स एरिसी सत्ति।

केवलणाणसहावो समप्पिओ तेण जीवस्स।।

इस पुद्गल कर्म की कैसी अपूर्व शक्ति दिखती है जिसके परिणामस्वरूप जीव का केवलज्ञान स्वभाव भी समाप्त हो जाता है। 

कर्म जड़ होने के बाद भी अनादि से जीव से सम्बन्ध होने के कारण उसे भीतर तक प्रभावित करता है और भव-भवान्तरों में भटकाता है।

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