क्या अधिक बच्चे होने पर उनको प्यार देने में भेदभाव होता है?

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शंका

मैंने अधिकांश देखा है कि जिन माता-पिता के ५-६ बच्चे होते हैं, वे अपने बच्चों के साथ भेदभाव करते हैं; जैसे बड़े बेटे या बेटी को, बड़ी सन्तान को पिता प्यार करेगा और छोटी सन्तान को माता। जो बाकी बच्चे होते हैं उनको उतना प्यार नहीं मिलता, तो वे अपने आप को उपेक्षित अनुभव करते हैं और इससे परिवार का सन्तुलन भी बिगड़ता है। कृपया हमारा मार्गदर्शन करें कि वे बच्चे कैसे अपना जीवन बिताएँ।

समाधान

आप जो कहती है, मैं आपकी बातों से सहमत नहीं हो पा रहा हूँ। मुझे ऐसा लगता है कि जब एक पिता के ज़्यादा सन्तान रहते थे तो वह ज़्यादा प्यार से रहते थे, उन्हें ज़्यादा प्यार मिलता था। ऐसा इस वजह से, कि यदि माँ का प्यार नहीं मिला तो पिता का प्यार मिल जाता था, पिता का प्यार नहीं मिला तो भाई का प्यार मिल जाता था, भाई का नहीं मिले तो बहन का मिल जाए; बड़े का नहीं मिले तो छोटे का मिल जाए, छोटे का न मिले तो बड़े का मिल जाए; किसी न किसी का मिल जाता था और कोटा पूरा हो जाता था। उसके परिणाम स्वरूप और बच्चों का भावनात्मक विकास भी अच्छा होता था। परन्तु आज अब एक ही सन्तान है; आप २ की बात, ४ की बात कर रहे हैं, अब तो एक ही होने लगे हैं और वे भी शिकायत करते हैं। क्योंकि उसके पापा भी जॉब में, मम्मी भी जॉब में दिनभर उनको व्यस्त रहना है, तो उनको माँ-बाप मिलते ही नहीं है, तो प्यार कहाँ? एक दिन एक बच्ची ने मेरे सामने अपने पिता से कहा कि- “पापा! आप हमको प्यार क्यों नहीं करते? आपके पास टाइम ही नहीं! आप दिन भर अपने ऑफिस में ही बिजी रहते हो। हम को आप ने जन्म दिया तो थोड़ा हमारा भी तो ख्याल रखो।” यह शिकायत आज के बच्चे करते हैं, पुराने युग में नहीं किया करते थे।

तो मैं यही कहना चाहता हूँ प्यार सामीप्य का नाम है, संवेदना का नाम है। सामीप्य और संवेदना जब तक नहीं मिलती, तब तक प्यार नहीं उमड़ पाता। लोगों को वह प्यार मिलना चाहिए, स्नेह मिलना चाहिए। स्नेह और प्यार के माध्यम से ही हम किसी का भावनात्मक विकास कर सकते हैं, इसकी जरूरत है; और मैं तो यह कहता हूँ आपकी एक सन्तान हो, दो सन्तान हो, चार सन्तान हो, प्यार बँटे, जरूर बंट जाए, मुझे उसकी परवाह नहीं; पर प्यार रुके नहीं, बहते रहे! अगर प्यार बहता रहेगा तो किसी की प्यास जीवित नहीं रहेगी, प्यास बुझती रहेगी। प्यार रुक रहा है, अब तो लोग पैसा देकर लौट खरीदते हैं; मेरी बात सुन रहे हैं आप? प्यार नहीं देते, पैसा देते हैं, समय नहीं देते सामग्री देते हैं; और बच्चों के साथ खेलते नहीं, उनको खिलौना दे देते हैं। नतीजा क्या निकलता है? बड़े होने पर बच्चे भी माँ-बाप की उपेक्षा करने लगते हैं और जब माँ बाप ने अपने बच्चों को बचपन में समय नहीं दिया, बड़े हो जाने पर बच्चे भी माँ बाप को समय नहीं दे पाते। वृद्ध आश्रम का रास्ता दिखा देते हैं, मामला गड़बड़ हो जाता है। जो मूल चीज है वह देने के लिए सोचना चाहिए, तभी आप अपनी भावी पीढ़ी को ठीक ढंग से सम्भाल सकेंगे।

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