क्या शहर और गाँव के पंचकल्याणकों में फर्क है?

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शंका

हमारे गाँव में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव संपन्न होने जा रहा है, यहाँ पर तो समाज उत्साहित है ही है लेकिन बाहर से भी बहुत सारे लोगों के सम्पर्क आ रहें हैं, फ़ोन कॉल आ रहें हैं और वो ये जानना चाह रहे हैं कि हम यहाँ पहुँचेंगे। तो जैसे शहरों में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा में आनन्द हम लूटते हैं। क्या यहाँ पर होने वाले पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में वैसा ही आनन्द का अनुभव हमारे लिए हो सकेगा?

समाधान

पंचकल्याणक या किसी भी धार्मिक आयोजन का आनन्द शहर और गाँव से नहीं जुड़ा होता, आनन्द हमारे मन से जुड़ा होता है, हमारी श्रद्धा से जुड़ा होता है। यदि व्यक्ति के मन में श्रद्धा हो तो छोटे से गाँव में भी वो आनन्द ले सकता है जो बड़े-बड़े शहरो में न लिया जाए और श्रद्धा न हो तो बड़े-बड़े अनुष्ठानों से भी व्यक्ति को कोई आनन्द नहीं मिल सकता। तो हमारी श्रद्धा होनी चाहिए। 

हालाँकि, मेरा अनुभव ये बताता है कि बड़े शहरों की तुलना में छोटे गाँवों में उत्साह कुछ ज़्यादा होता है। गाँव में लोग कम होते हैं और जो होते हैं वो अपना शत-प्रतिशत लगा देते हैं, दुकान, धँधा, घर, परिवार सब छोड़कर और शहर के लोगों को हर एक प्रकार के गोरखधंधों में उलझना पड़ता है। तो उस दृष्टि से देखा जाए तो इन्वॉल्वमेंट, सहभागिता और समर्पण का भाव जहाँ ज़्यादा होगा, रस वहाँ आएगा। इसलिए बाय कहने को छोटा सा गाँव है लेकिन निश्चित यहाँ के आयोजन में बहुत आनन्द आएगा। बाय गाँव छोटा है पर बाय के लोग बहुत बड़े-बड़े हैं, पूरे भारत में फैले हुए हैं। और मुझे जैसे सूचना मिली है कि बाय वासी जो विभिन्न स्थानों में प्रवास कर रहे हैं, सबने अपने कार्यक्रम बना लिए हैं। आयोजन में आनन्द आएगा ही और जो भी हो हमें तो पंचकल्याणक से मतलब है, बड़े-छोटे स्थान से नहीं। पंचकल्याणक चाहे बड़े जगह में हो चाहे छोटे जगह में हो, पंचकल्याणक जहाँ भी होगा न बड़ा होगा न छोटा होगा, पंचकल्याणक तो पंचकल्याणक है, वो भव्य होगा, भव्यदि भव्य।

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