क्या भगवान और देवता एक ही सिक्के के दो पहलू हैं या दोनों में अन्तर है? मैं किनको भगवान मानूं और किनको देवता मानूं?
भगवान जीवन की पूर्णता है, भगवत्ता जीवन की पूर्णता है और देवता बीच की अवस्था है। जिन्हें हम देवता मानकर पूजते हैं वो भी एक तरह से भगवान के ही अनुयायी है। एक बात ध्यान रखनी है कि जैन धर्म के अनुसार इंसान भगवान बन सकता है, देवता को भगवान बनने का सौभाग्य नहीं। देवता को भगवान बनने के लिए इंसान का चोला पहनना पड़ता है। तुलसीदास जी कहते हैं
“बड़े भाग मानुष तन पावा, सुर दुर्लभ सब ग्रंथन्हि गावा”
मनुष्य का स्थान सबसे ऊँचा है। इसलिए जैन धर्म के अनुसार हम अपने परमात्मा को स्मरण करें जो वीतराग है, बाकी और जो हैं वे सब परमात्मा के सेवक हैं, अनुचर है; वे सम्मान के पात्र हो सकते हैं, पूजा के पात्र नहीं।
जैन धर्म के अनुसार भगवान भगवान है और हमसे जुदा कोई भगवान भी नहीं, हम ही स्वयं भगवान हैं। हर आत्मा परमात्मा है, जिन्हें हम परमात्मा के रूप में पूजते हैं, उनमें और हममें केवल एक ही मौलिक अन्तर है कि वे निर्विकार हैं, हम में विकार है। जब हम अपने अन्दर के विकार को दूर करेंगे, हमारे भीतर भी निर्विकार परमात्मा प्रकट होंगे।
Leave a Reply