क्या जैन धर्म में भी पुनर्जन्म की मान्यता है?
जैन धर्म का मूल आधार ही पुनर्जन्म है। जैन धर्म आत्मादि दर्शन है जो आत्मा, पुनर्जन्म, कर्म, पुण्य, पाप, स्वर्ग, मोक्ष पर विश्वास करता है। जैन धर्म में एक शब्द आता है- जाति स्मरण! जाति स्मरण यानि अपने अतीत के जन्मों की स्मृति हो आना। जिस मनुष्य को ऐसा हो जाता है वो जाति स्मरण के बल पर सम्यक् दर्शन को भी प्राप्त कर जाता है। ये जाति स्मरण की साधना केवल जैन परम्परा में देखने को मिलती है, अन्यत्र नहीं। तो ये पुनर्जन्म जैन धर्म का मूल आधार है और जो पुनर्जन्म पर विश्वास रखता है वहीं अपने जीवन में सुधार ला सकता है।
एक डॉक्टर स्टीवेंसन हुए हैं, उन्होंने इस तरह के लगभग चार सौ घटनाओं का विश्लेषण किया है। और उन्होंने उसे बहुत तथ्यात्मक तरीके से लिखा है, जो भारत और भारत से बाहर की भी घटना है। जैन धर्म के अनुसार पुनर्जन्म के अस्तित्व की बातें पूरी तरह से स्वीकार्य है। और एक जीव मृत्यु के उपरान्त दूसरे के यहाँ जन्म ले सकता है। उसमें जिस तरह की घटनाओं का विश्लेषण किया है उन घटनाओं को देखते हुए, एक-दो अपवादों को छोड़ करके बाकी को स्वीकार करने में कोई दोष नहीं है। क्योंकि एक दो घटनाएँ ऐसी भी उसमें उन्होंने लिखी हैं कि व्यक्ति आज मरा और चार महीने बाद दूसरों के घर कोई बच्चा हुआ है। जबकि जैन धर्म के अनुसार कोई भी जीव नौ महीने तक माँ के पेट में रहता है, तभी प्रकट होता है। वो एक दो अपवाद है। हो सकता है उसके पीछे अन्य भी कोई कारण होंगे। लेकिन जैन धर्म का मर्म यही है कि पुनर्जन्म है।
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