क्या पूजन के समय ठोना में जिनवर की स्थापना उचित है?

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शंका

क्या पूजन के समय ठोना में स्थापना करनी चाहिए या? कहीं-कहीं पर ऐसा लेख मिलता है कि भगवान के सामने स्थापना नहीं करनी चाहिए? यदि करते हैं तो क्या स्थापना के चावलों पर जल डालकर माथे पर लगाना चाहिए?

समाधान

एक बार हमसे एक ब्रह्मचारी ने पूछा ‘महाराज जी! आप चौके में जाएँ और चौके वाला यदि आपकी पूजा में आपकी स्थापना न करे तो आप क्या करेंगे?’ हमने कहा कि “हम अपनी स्थापना दूसरे चौके में कर लेंगे।” पूजन के अंगों में अभिषेक के उपरान्त आवाहन, स्थापना, सन्निधिकरण फिर पूजन-विसर्जन ये पाँच अंग हैं इसलिए पूजन की प्रारम्भिक क्रिया में आवाहन, स्थापन, सन्निधिकरण की बात कही गई है, लेकिन जो लोग इसके मर्म को नहीं समझते वो निषेध करते हैं। वो सोचते हैं कि भगवान को ठोने में आहत कर रहे हैं; चावल में आहत कर रहे हैं। नहीं!भगवान को अपने हृदय की वेदी में स्थापित करना चाहिए। भगवान को अपने हृदय में स्थापित करने के लिए आप लोग आवाहन करते हैं और जो पुष्प उस ठोने पर क्षेपते हैं वो पुष्प केवल प्रतीक हैं। ठोने पर क्या बना है और पुष्प कितना क्षेपे, इसमें जितने त्यागी जितने विद्वान् उतनी बातें हैं। मैं भी पहले नहीं समझता था। लेकिन जब मैंने सारे प्रतिष्ठा ग्रंथों का विलोकन किया तो उसमें एक जगह स्पष्ट रूप से उल्लेख मिला ‘जयसेन प्रतिष्ठा पाठ’ जो आज का सबसे प्रामाणिक प्रतिष्ठा पाठ माना जाता है। उसमें लिखा स्वस्तिकोपरि पुष्पांजलिम् क्षिपेत। स्वस्तिक बनाएँ और उसमें पुष्पांजलि क्षेपें, प्रतीक स्वरूप जो आपके संकल्प का प्रतीक है। और जब पूजन का विसर्जन हो जाए तो न उसको औंधा करें, न उसको सीधा करें, न उसमें पानी डालें, न ठण्डा न गरम करें। पूजन का संकल्प लिया था, विसर्जन पाठ करके हमने पूजन के संकल्प खत्म कर दिया विसर्जन हो गया; शास्त्र का विधान तो ये है। उसमें पानी डालने का औचित्य नहीं, तो उसकी आशिका लेने का क्या औचित्य है? क्या ठोना में भगवान हैं जो उनकी आसिका ले रहे हो? आसिका लेना है, तो ठोने में मत लो। ‘श्री जिनवर की आसिका लूं मैं शीश चढा़ए, भव-भव के पातक कटें, विघ्न दूर हो जाएँ’ इस भाव के साथ आप करेंगे तो सारे कार्य आपके हो जायेंगे।

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