क्या जो होना होता है वह निश्चित होता है?

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शंका

कहते हैं कि जो होना है वह निश्चित है पर जिसके द्वारा अच्छा या बुरा होता है, तो उसके द्वारा हुए अच्छे या बुरे कार्य का पाप और पुण्य क्यों लगता है?

समाधान

जो होना है वह निश्चित है ऐसा किसने कहा? ये किसका सिद्धान्त है? केवलज्ञानी का? केवल ज्ञानी ने ये बताया है? किस केवलज्ञानी ने अपने उपदेश में कहा कि ‘जो होना है वह निश्चित है तू काहे को परेशान हो रहा है?’ किसी भी केवलज्ञानी ने अपने धर्मोपदेश में ये कहा है क्या?-“जो होना है वह निश्चित है तू चुपचाप हाथ पर हाथ रख कर बैठ जा।” केवलज्ञानी के ज्ञान में क्या है मुझे पता नहीं पर केवलज्ञानी के उपदेश में क्या है ये मुझे पता है। क्योंकि उनके उपदेश में जो है वही जिनवाणी है। और जिनवाणी कहती है कि कार्य का क्रमानुक्रम कारण के क्रमानुक्रम पर निर्भर करता है। जैसी कार्य सामग्री होती है वैसा कार्य होता है। अच्छी कार्य सामग्री होने पर कार्य अच्छा और बुरी कार्य सामग्री होने पर कार्य बुरा होता है। 

एक कार्य के होने के अनेक कारण होते हैं। और एक द्रव्य काल में अनेक योग्यताएँ होती हैं। उसमें जैसा निमित्त होता है वैसा काम हो जाता है। आप यहाँ बैठकर मेरी बात गम्भीरता से सुन रहे हैं। इस समय आपके अन्दर बहुत सारी योग्यताएँ हैं। आप गम्भीर हो कर सुन रहे हैं। यदि कोई आश्चर्यकारी बात कह दूँ तो आप चकित भी हो सकते हैं। अभी कोई भयावनी बात कह दूँ तो आप डर भी सकते हैं। आप पर आक्षेप लगा दूँ तो आप चौंक भी सकते हैं, कोई ऐसी बात कह दूँ तो आप घबरा भी सकते हैं और एक अच्छा सा जोक सुना दूँ तो आप खिलखिला भी सकते हैं। आप का खिलखिलाना, आपका गम्भीर होना, आपका चौंकना, आपका चकिता होना, आपका डरना, आपका घबराना ये सब किस पर निर्भर है। सामने वाले के निमित्त पर, है ना? जैसा निमित्त है वैसा हो गया। अग्नि पर चन्दन का चूर्ण डालोगे तो सुगन्ध आयेगी और बाल का टुकड़ा डालोगे तो दुर्गन्ध आयेगी। अब चन्दन का चूर्ण उसमें पड़ना ही था; बाल का टुकड़ा उसमें पड़ना ही था तो सुगन्ध फूटनी ही थी और दुर्गन्ध फैलनी ही थी। ये बातें करोगे तो एक ही उत्तर है, ऐसा क्यों हुआ, क्योंकि होना ही था और ऐसा क्यों नहीं हुआ, क्योंकि ऐसा नहीं होना था। फिर आपने क्यों पूछा? क्योंकि पूछना ही था। मैंने क्यों जबाव दिया? क्योंकि मुझे जबाव देना ही था। चोर ने चोरी की क्योंकि चोरी करनी ही थी। पुलिस ने क्यों पकड़ा? क्योंकि उसे पकड़ना ही था। ये कोई धर्म नहीं। जैन धर्म में इस तरह के मृत विचारों का कोई स्थान नहीं है। इसलिए इन बातों में मत उलझिए।

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