क्या आत्महत्या उचित है?

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शंका

गुरुदेव आज बॉलीवुड के स्थापित सफल युवा एक्टर सुशांत सिंह राजपूत ने आत्महत्या करके अपने जीवन को समाप्त कर लिया। मेरा प्रश्न यह है कि आज की युवा पीढ़ी एक्टर्स, क्रिकेटर्स के जीवन और उनकी सफलता से बहुत प्रभावित होते हैं और उन्हें अपना आदर्श बना लेते हैं लेकिन बार-बार यह देखने में आता है कि अपने क्षेत्र में सफल व्यक्ति अपने जीवन से सन्तुष्ट हो ऐसा जरूरी नहीं है। तो क्या हम जैसे युवाओं को एक्टर्स, क्रिकेटर्स को छोड़ करके श्रीराम, महावीर, गांधी जैसे लोग जिन्होंने अपने जीवन के मुश्किल समय को भी समता पूर्वक जिया, उन्हें अपना आदर्श नहीं बनाना चाहिए? जिससे हम अपने जीवन के किसी भी क्षेत्र में अगर सफलता नहीं पा सके तो भी निराशा और असफलता को अपने ऊपर हावी न होने दें।

अंकित जैन, प्रमाणिक समूह (आगरा, उत्तर प्रदेश)

समाधान

बहुत ही गम्भीर सवाल उठाया है। ये घटना हर व्यक्ति को गम्भीरता से सोचने के लिए बाध्य करती है। दुनिया के जितने बड़े धनपति हुए हैं, अभी कुछ वर्ष पूर्व में जब कोलकाता में था, एक युवक ने पिछले बीस सालों के विश्व के बड़े धनपतियों की लिस्ट निकली था। और उसमें करीब चालीस थे और चालीस में चौबीस ने आत्महत्याएँ की थी, ये एक तस्वीर है। इंटरनेट से निकाल करके दिया था, 2013 की बात है। नाम मुझे याद नहीं है लेकिन बड़े-बड़े धनपति थें। ये हमे सोचने को मजबूर करता है। अगर पूरे विश्व का आप विश्लेषण करें तो बहुत बड़े-बड़े अभिनेता और स्टार्स जिन्हें आज आप सेलिब्रिटी के रूप में मानते हैं, वे लोग आत्महत्या करते हैं। आज की घटना ने भी हमें वही बताया है। इन सबके पीछे के कारण को जानना चाहिए। इसकी एक ही वजह है कि इन्होंने सफलता का वास्तविक अर्थ ही नहीं समझा। आज के सन्दर्भ में सफलता का अर्थ केवल यही बन गया है कि किसी निर्धारित लक्ष्य को पा लेना सफलता है और हर व्यक्ति ने अपने-अपने लक्ष्य बनाए हैं, जो बड़े उथले हैं। उस उथले लक्ष्य को पा करके व्यक्ति अपने आपको सफलीभूत मानता है लेकिन वही जीवन की परिपूर्णता नहीं होती। उसके सामने जब किसी तरह की चुनौतियाँ आती हैं तो वो उसे झेल नहीं पाता और हार कर, हताश होकर आत्महत्या जैसे कुकृत्य कर बैठता है। हमें चाहिए कि हम प्रारम्भ से सफलता का अर्थ समझें। जीवन की सफलता का मतलब किसी लक्ष्य को प्राप्त कर लेना मात्र नहीं है। जीवन की सच्ची सफलता का मतलब ये है कि हर परिस्थिति में अपनों को ढाल लेने की सामर्थ्य विकसित करना। चाहे जैसी परिस्थितियाँ हैं उसको उसमें ढाल लें। अगर मुझे कोई उपलब्धि हुई है ये मेरी सफलता का प्रतीक है। लेकिन मेरी सच्ची सफलता तब होगी जब उपलब्धि मेरे हाथ से छिटक जाए तो भी मेरे मन की प्रसन्नता टिकी रहे। मैं अक्सर कहता हूँ, वो सफलता अर्थहीन है, जो हमारी मन की प्रसन्नता को लील जाए। ये बड़ी उथली सफलता है, सतही सफलता है। हमें इनसे रंच मात्र प्रभावित नहीं होना चाहिए। 

प्रश्नकार ने बिल्कुल सही कहा, क्या हम श्रीराम, श्री कृष्ण, भगवान महावीर या गांधी जैसे महापुरुषों के जीवन को अपना आदर्श नहीं बना सकतें? वाकई में आदर्श तो यही हैं। जिन्होंने विषमतम परिस्थिति में भी अपने मन की समता को टिकाए रखा। जिनका मन हर स्थिति में मजबूत बना रहा। आज तो थोड़े से आघात में लोग टूट जाते हैं और आत्महत्या जैसा कृत्य कर बैठते हैं। जबकि ये भूल जाते हैं कि आत्महत्या किसी समस्या का समाधान नहीं है। ये तो एक प्रकार का पलायन है, जीवन से हाथ धोना है। चाहे जैसी समस्या हो महापुरुषों के जीवन चरित्र को सामने रखो और ये मानो कि जीवन के उतार-चढ़ाव के मध्य ठहराव रखने में ही जीवन का सच्चा रस है। जैसे महापुरुषों ने अपने जीवन के विकट परिस्थितियों में भी अपनी स्थिरता रखी, वैसी ही मुझे भी रखनी चाहिए। पर न तो आज ऐसी शिक्षा है, न ऐसा वातावरण। थोड़े-थोड़े में लोग टूट जाते हैं, जिंदगी से हार बैठते हैं। मैं महावीर जी में था, २०१६ की बात है, जनवरी के महीने की। एक युवक आया चेन्नई से, वो अपने ब्रीफकेस में सल्फास की गोलियाँ लेकर आया था। उसने अपनी आपबीती बताई। एक कंपनी में वो था, उस कंपनी से उसकी नौकरी हट गई। इसी बीच जिस लड़की से वो प्यार करता था, उससे ब्रेकअप हो गया। और इन दोनों घटनाओं को वो पचा नहीं पा रहा था, तो उसने आत्महत्या करने का मन बना लिया। गोली ले आया पर तभी कहाँ से उसकी बुद्धि जगी। उसने कहा चलो, एक बार महाराज से मार्गदर्शन ले लो। वो कभी कभार मुझे सुनता था। प्रमाणिक ऐप के माध्यम से उसने मेरा लोकेशन खोजा, मैं महावीरजी में था। वो वहाँ आया, व्यस्तता थी। दो दिन तक रुका रहा, दो दिन तक मैं मिल नहीं पाया। दो दिन बाद जब उसने अपनी बात कही, मैंने उसे सुना, उसने ये सारी बातें बताई। एक संपन्न परिवार का युवक, जिसके घर डेढ़ सौ एकड़ की खेती हो, जिसके भाई का गल्ला का अच्छा कारोबार हो। वो आदमी आठ लाख रुपया साल के पैकेज का जॉब करता था। उस जॉब के छूट जाने का उसे बड़ा कष्ट था और ब्रेकअप का परिणाम था। मैंने उसे मोटिवेट किया कि हमेशा एक बात ध्यान रखो, निन्यानबे दरवाजे बंद होते हैं तो सौंवा द्वार खुलता है। हमारी दृष्टि बंद द्वारों पर नहीं, खुले द्वार पर हो। मैंने मोटिवेट किया कि तुम घर जाओ। नौकरी छूट गई, तुम अगर नॉर्मल रूप में मेरे पास आते तो मैं तुम्हें नौकरी छोड़ने की सलाह देता। अच्छा होगा कि तुम अपने माँ-बाप की पैतृक सम्पत्ति को संभालोगे, अपनी खेती बाड़ी करोगे, माता-पिता का आशीर्वाद लोगे और उनके निकट रहोगे, उनका स्नेह पाओगे, उनका सद्भाव पाओगे। मैंने उसे अपने तरीके से मोटिवेट किया, तत्क्षण मैंने कहा वो गोलियाँ फेंको उसने उन गोलियों को नाली में फेंक कर खत्म किया, बच गया। सवाल केवल इस बात का है कि लोगों को सही मोटिवेशन कैसे मिले? आज जीवन से हारने के बाद कोई किसी को बताने वाला नहीं, कोई किसी को बचाने वाला नहीं। जब तक कोई किसी को इस तरीके से बताएगा नहीं, बचाएगा नहीं तो रास्ता कैसे मिलेगा? इसलिए मैं कहता हूँ आज के हर युवक-युवती को गुरुओं का प्रवचन सुनना चाहिए। उनसे उनको जो मोटिवेशन मिलता है वो लेना चाहिए ताकि लोग ऐसे कृत्यों से बचें। मेरे सम्पर्क में ऐसे अनेक लोग हैं, जो अनेक बार इसी शंका समाधान के मंच से कहे हैं कि मैं तो हार गया था, मैंने तो आत्महत्या की ठान ली थी। महाराज आपको सुनने के बाद हमारे जीवन में बदलाव आया। आज मैं बहुत अच्छा हूँ। मेरी नकारात्मकताएँ खत्म हुई हैं। जीवन में जो भी समस्याएँ हैं वो हमारी समस्याएँ हैं, उनका समाधान भी हमें ही तलाशना होगा। ये घटना सबके मन को झकझोरने वाली है। लोग जागे, चेते और अपने जीवन की दिशा बदलें।

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