क्या वास्तव में मन्दिर जाने से धर्म होता है?

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शंका

क्या वास्तव में मन्दिर जाने से धर्म होता है?

समाधान

जब आप छोटों को ये सिखाएँगे कि मन्दिर जाने से क्या होता है, तो बड़े होकर उनको कहने की आवश्यकता नहीं होगी कि मन्दिर जाने से क्या होता है। 

ऐसा ही प्रश्न एक युवक ने मुझसे पूछा कि ‘महाराज! मन्दिर जाने के लिए इतना जोर क्यों दिया जाता है, क्या मन्दिर जाने से ही धर्म होता है?’ मैंने कहा “मन्दिर जाने से ही धर्म होता है ऐसी बात मैं नहीं करता लेकिन मन्दिर जाने से धर्म होता है इस बात को तुम्हें मानना होगा।” 

‘हमें वहाँ जाने से क्या मिलता है? वहाँ तो मूर्ति है, भगवान हमसे कुछ लेते नहीं न हमें कुछ देते तो मन्दिर जाने से क्या मिलता है?’ हमने कहा कि “तुमने भगवान की मुद्रा को देखा?” वो बोला कि ‘देखा है!’ “कैसे हैं?” बोला ‘शान्त हैं।’ “चेहरे प्रसन्नता दिखती है?” ‘हाँ दिखती है।’ हमने कहा “उनमें गुस्सा दिखता है?” वह बोला कि ‘नहीं दिखता।’ “उनमें किसी के प्रति हँसी दिखती है?’ बोला ‘नहीं दिखती’, कुछ नहीं सहज शान्त और मुस्कान भरी उनकी मुद्रा है। मैंने और पूछा “ये बताओ कि भगवान के पास कोई धन पैसा है?” वह बोला ‘नहीं।’ मैंने कहा “भगवान अपने साथ कुछ लिए हैं?” बोला ‘नहीं लिए।’ फिर तो सब कुछ ठीक है, तो कुछ बोले या न बोले भगवान की मुद्रा यह बोलती है, तू न कुछ देकर आया है, न कुछ लेकर जाएगा। यही तेरा रूप है। खाली हाथ आया, हाथ पसारे जाना है। कुछ भी तुम्हारे पास नहीं है। तुम रोज भगवान के दर्शन करने जाओ और दर्शन करते वक्त केवल इतनी बात समझ लो कि भगवन आप जिस रूप में दिख रहे हैं वही मेरे जीवन का सच्चा रूप है। न हम कुछ लेकर आए हैं न हम कुछ देकर जाएँगे तो कभी तुम्हें फिर कुछ कहने की जरूरत नहीं। सुबह से तुम्हें एक अच्छी प्रेरणा मिल जाएगी फिर संसार से तुम्हारा ज्यादा लगाव नहीं होगा और फिर तुम्हारे अन्दर पाप और अनाचार की प्रवृत्तियाँ नहीं जगेंगी। 

मन्दिर जाने से धर्म इसलिए होता है क्योंकि वहाँ जाने से हमारा मन जाग्रत होता है, हमारी धर्म की श्रद्धा और ज्यादा बलवान बनती है। श्रद्धा बलवान होती है, मन निर्मल होता है और मन की निर्मलता, श्रद्धा की प्रगाढ़ता हमारे जीवन की धारा को परिवर्तित करती है। एक दिन एक युवक ने मुझे बताया कि जब उसके पिताजी ने उससे मन्दिर के दर्शन के लिए कहा तो उस लड़के ने कहा ‘मन्दिर जाने की क्या जरूरत है?’ मैंने कहा “बिल्कुल ठीक कहते हो भगवान सब जगह हैं। ये बताओ हवा भी तो सब जगह है।” बोला ‘हवा भी सब जगह है।’ मैंने कहा कि “तुम्हारी गाड़ी के पहिए में जब हवा नहीं रहती है, तो हवा भरने के लिए क्या करते हो कहीं की भी हवा लेकर अपनी गाड़ी में भर लेते हो?” बोले ‘नहीं महाराज इसके लिए तो फिलिंग स्टेशन पर जाना पड़ता है, वहाँ जाने पर ही हवा भरी जाती है।’ मैं बोला “क्यों फिलिंग स्टेशन पर क्यों जाना पड़ता है। कहीं की हवा लेकर क्यों नहीं भर लेते हो?” बोला ‘हवा रहने से क्या होगा जब तक वैसा प्रेशर नहीं होता तब तक उसमें हवा नहीं भरी जाती फिलिंग स्टेशन में ही उतना प्रेशर रहता है वहीं हवा भरी जाती है।’ मैंने कहा “बस तुमसे मैं इतना ही कहता हूँ भगवान सब जगह हो सकते हैं लेकिन प्रेशर तो केवल मन्दिर में ही होता है वहीं हवा भरती है वो तुम्हें रिचार्ज करेगा।” भगवान के चरणों में जाने से विनम्रता का भाव आता है। हमें लगता है कि हमारा कोई आदर्श पुरूष है जिनकी शरण में जाकर हम अपने जीवन का उद्धार कर सकते हैं। अपने अहंकार को खत्म कर सकते हैं। अपने पापों का परित्याग कर सकते हैं अपनी बुराइयों को छोड़ सकते हैं। अपने मन को पवित्र बना सकते हैं। मन्दिर जाने से यही धर्म होता है और इसके अलावा धर्म करने का कोई दूसरा स्थान नहीं है।

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