जैन धर्म में मुहूर्त का क्या महत्त्व है?

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शंका

क्या जैन धर्म के अनुसार कोई भी शुभ-काम करने के लिए मुहूर्त निकालने की आवश्यकता है, जैसे हिन्दू परम्परा में है? क्या चौघड़िया में भी कार्य सम्पन्न हो सकता है?

समाधान

मुहूर्त के विषय में हमारे जैन शास्त्रों में भी मान्यता दी गई है। जहाँ तक सम्भव हो शुभ कार्य को शुभ मुहूर्त में करना चाहिए। क्योंकि द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव का प्रभाव पड़ता है इसे नकारें नहीं। लेकिन ज्योतिष जितना flexible है उतना शायद आपको पता नहीं! उसमे बहुत गुन्जाइश है। मैंने मुहूर्त चिन्तामणी पढ़ा, पूरा मुहूर्त शास्त्र पढ़ा, पूरा शास्त्र पढ़ने के बाद उसमें आया कि यदि एक पंचकल्याणक का मुहूर्त शोधना है तो १०८ चीजें और १०८ बातें शोधो। दस-पाँच वर्ष में पूरी की पूरी चीज़ें positive होती हैं, एक-आध मुहूर्त ही ऐसा होता है। ऐसे तो हम लोग प्रतिष्ठा ही नहीं कर पायेंगे, क्या करें? तो फिर ऐसा करें कि इसमें जितना अधिकतम हो उतना शोध लो और यदि अधिकतम न हो तो निगेटिव कम हो, जो नकारात्मक कुयोग हो उसको हटा दो। और यदि वो भी न मिले और काम जरूरी है, तो उन्होंने आगे लिखा कि मूल निकाल करके काम कर लो, लग्न बली हो तो सब काम हो जायेगा और यदि लग्न बली नहीं है और काम करना जरूरी है, तो क्या करें तो लिखा कि मनोबल से काम कर लो। हमने ग्रन्थ वहीं बन्द कर दिया। यही हम पहले पढ़ लेते तो इतना पढ़ने की जरूरत नहीं होती।

 फिर भी हम आप लोग क्षीणपुण्य जीव हैं। इसलिए यथा सम्भव मुहूर्त देखकर करो। पर लकीर के फकीर मत बनो। ध्यान रखना कि मुहूर्त कितना भी शुभ हो भीतर की परणति यदि खराब होगी तो होनी ही है। पारसनाथ भगवान की दीक्षा का मुहूर्त जबर्दस्त था पर सात दिन का उपसर्ग उनको भी सहना पड़ा। और राम जी का मुहूर्त शोध था; मुनि वशिष्ठ तो सम ज्ञानी पंण्डित थे। उन्होंने मुहूर्त शोध लिया पर विवाह हुआ और उन्हें वनवास जाना पड़ा। धर-धर लगन धरे, करम गति टारे न टरे। यथा सम्भव मुहूर्त देखो। और जो लोग कदम-कदम पर मुहूर्त देखते हों तो उनके जीवन में कुछ भी नहीं हो पाता है।

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