अनैतिक कार्य से कमाए धन का दान करना उचित?

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शंका

इस माह ७ जुलाई को प्रवचन में आपने एक दृष्टांत सुनाया था। एक व्यक्ति मर कर यमलोक पहुंचता है। वहाँ पर उसका बहीखाता देख कर उसको नरक में जाने के आदेश दिए जाते हैं। वह व्यक्ति बड़ा अनुनय-विनय करता है कि ‘मुझे नर्क नहीं स्वर्ग भेजा जाए’। वहाँ चित्रगुप्त उनको कहते हैं कि ‘तुम ऐसा कोई अच्छा काम बताओ जो तुमने अपने जीवन में किया हो।’ उस व्यक्ति ने काफी सोचने समझने के बाद में कहा कि ‘मैंने एक बार ‘चवन्नी’ का दान दिया था।’ चित्रगुप्त पूछते हैं ‘तुमने चवन्नी कमाई कैसे थी?’ तो उसने कहा ‘मैंने ‘अठन्नी’ चुराई थी।’ यमराज कहते हैं ‘यह तो तुमने गलत काम किया इसलिए तुम को नर्क में जाना पड़ेगा।’

कई लोग भ्रष्टाचार से, रिश्वत लेकर के, अधर्म व गलत तरीके से व्यापार करके धन कमाते हैं उसमें से यदि कुछ अंश भी दान करते हैं तो निश्चित रूप से वक्त गलत तरीके से कमाया धन ही माना जाएगा, उस स्थिति में ऐसे लोगों की गति क्या होगी?

समाधान

सबसे पहली बात गलत तरीके से कमाए जाने वाले धन की है। गलत तरीका मतलब डाका डालना, चोरी करना, लूट लेना, गड़ा धन हड़प लेना, किसी का शोषण करना, विश्वासघात करना, धोखाधड़ी करना-ये घोर अनैतिक कर्म है। इस प्रकार के कर्म से अगर कोई धन अर्जित करता है, तो वो पाप का भागीदार होगा। हम लोगों ने बहुत कहानियाँ सुनी हैं कि पहले जितने डाका डालने वाले डाकू लोग होते थे, वो पहले मन्दिरों में जाकर के मनौतियाँ मांगते थे, मन्दिर में धोंक लगाकर डाका डालने जाते थे और आने के बाद उसे पूरा भी करते थे। ऐसे भी किस्से सुने कि उन्होंने बड़े-बड़े घंटे मन्दिरों में चढ़ाये यानि अपनी डकैती में भगवान को भी शामिल कर लिया, वो हिस्सेदार हो गये। 

मैं राजस्थान में एक प्रसिद्ध मन्दिर के पास से गुजर रहा था, वहाँ के लोग बोले- ‘बहुत बड़ा धंधा है भगवान का।’ मुझे मामला नहीं समझ आया, ‘भगवान का धंधा?’ भगवान का धंधा कहूँ तो संसार ही भगवान का है। वे बोले “नहीं महाराज! इस इलाके के जितने तस्कर हैं सब भगवान के पार्टनर हैं। सबने भगवान को पार्टनर बना रखा है और सबने ऐसा बना रखा कि करोड़ों का चढ़ावा आता है वहाँ पर।” अब इस विषय में मैं अपना अभिमत प्रकट करता हूँ, अनैतिक तरीके से धन अर्जन करना उचित नहीं है, यह ठीक वैसा ही है कि अपने शरीर को पूरी तरह से कीचड़ से लिप्त करना और एक चुल्लू पानी डालकर उसे धोने का प्रयास करना। पूरा शरीर यदि कीचड़ में संलिप्त है, तो चुल्लू भर पानी से तो साफ नहीं होगा, बेहतर है कि कीचड़ में पाँव ही मत डालो, नहाने की नौबत ही नहीं होगी। यदि भूल से डाल दिया है, तो जब तक कीचड़ का एक कण भी बचा रहे तब तक पानी डालते रहो तब कुछ उद्धार होगा। 

अब रहा सवाल – ऐसे लोग अगर धर्म के कार्य में अपना धन लगाते हैं तो उसे स्वीकारना चाहिए या नहीं? मेरी राय में ऐसे धन को अस्वीकार नहीं करना चाहिए, अगर वह अनैतिक नहीं है। क्यों? इसे आप सकारात्मक रूप में देखें कि कम से कम इतना धन तो अच्छे कार्य में लगा, नहीं तो वह भी पाप में लगता और उस धन से किसी का लाभ और भला तो होगा, वो उसका जाने, उसका पुण्य-पाप उसके हाथ में, कितना कीचड़ लगाया, कितना पानी डाला, वह अपना हिसाब लगा ले। लेकिन जो है वह स्वीकारने योग्य है और ऐसे लोगों के लिए उनके दान का बहिष्कार करने की जगह उनके आचरण के सुधार की प्रेरणा देना चाहिए। 

मैं एक स्थान पर था, महावीर जयंती का कार्यक्रम था। भव्य आयोजन था, भगवान महावीर के जन्म कल्याणक का महोत्सव था। एक भाई ने बोली ली, बोली लेने के बाद जैसे ही बोली खुली, खुसर-पुसर शुरू हो गई। उस व्यक्ति की पेस्टिसाइड की फैक्ट्री थी, हिंसा का कर्म है, मैं तो ऐसे लोगों से आहार भी नहीं लेता। अब बोली खुल गई, मैंने मंच पर ही उसे बुलाया, कान में बोला धीरे से, ‘भगवान महावीर के जन्म कल्याणक महोत्सव का सौधर्म इन्द्र बनने जा रहे हो तुम, पेस्टिसाइड का धंधा कर रहे हो, भैया यह थोड़ा सा अटपटा सा लग रहा है।’ उस व्यक्ति ने तत्क्षण अपने दोनों कान पकड़े, बोला महाराज ‘मुझे थोड़ा समय दे दें तो मैं इससे दूर हो जाऊँगा।’ हमने कहा ‘कितना समय चाहिए?’ उन्होंने कहा ‘२ साल।’ मैंने कहा ‘३ साल दिया, इससे बाहर आओ।’ उस व्यक्ति ने तत्क्षण संकल्प लिया और उस दिन की तीन बोलियाँ और थी, वो भी ले लीं। समाज में इस बात की घोषणा भी कर दी गई। उसके बाद उस व्यक्ति पर इतना गहरा प्रभाव पड़ा कि वहाँ गौशाला की स्थापना होनी थी, मैं स्थान का नाम नहीं ले रहा हूँ, लोग तो समझ गये होंगे, उस व्यक्ति ने ८ एकड़ जमीन दान में दी जो अत्यन्त मूल्यवान थी। न केवल ८ एकड़ जमीन दान में दी अपितु आठ लाख रुपया भी दिया। बहुत पुरानी बात है, आज से २५ साल पुरानी बात। उस व्यक्ति के जीवन में बदलाव आ गया, उसने अपनी पूरी फैक्ट्री को परिवर्तित कर दिया, पेस्टिसाइड की जगह फर्टिलाइजर में परिवर्तित कर दिया। जीवन बदल गया, उसने गौशाला के लिए आगे आकर कहा कि ‘आजतक मैंने हिंसा की कमाई की, मुझे एहसास हो रहा है। अब मैं कुछ अहिंसा के लिए करूँ’ तो ये एक सकारात्मक प्रेरणा है। ऐसे व्यक्ति को अछूत की तरह देखना अच्छी बात नहीं है। 

कतिपय लोगों का एक ऐसा स्वभाव सा बन जाता है। कोई भी बड़ा दान देता है, तो लोग कहते हैं कि ‘ये तो नम्बर दो का धंधा है।’ ऐसा नहीं है, मेरे सम्पर्क में से बहुत सारे लोग हैं जिनका सब कुछ बुक्स में ही रहता है। सब साफ, उन्हें कोई अनैतिक कर्म करने की जरूरत ही नहीं है। अनैतिक कर्म करने वाले के मन में दान के भाव नहीं होते, हाँ अवैधानिक काम करने वाले थोड़े-बहुत होंगे, जो आप लोग करते रहते हो, मैनिपुलेशन करके। मैं थोड़ा बात भी मैनिपुलेट करके कर रहा हूँ, वो अवैधानिक है, अनैतिक नहीं। ऐसे कृत्यों के प्रति हमें बहुत सावधानी रखनी चाहिए और हमारे समाज का कोई अंग है उसके प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण होना चाहिए। गुरुदेव से एक बार किसी ने पूछा कि ‘महाराज जी लोग नंबर दो का काम करते हैं और धर्म सभाओं में आगे आकर के बैठ जाते हैं, कम से कम आपके सामने तो ऐसा नहीं होना चाहिए। १९९४ की बात है।’ गुरुदेव ने जबाब दिया- ये बताओ मरीज अस्पताल में नहीं जाएगा तो कहाँ जायेगा? फिर उन्होंने कहा- आप तो एक प्रोफेसर हो? जी हाँ। कापियाँ जांचते हो? ‘जी।’ ‘कितने % में पास करते हो?’ ‘३०% में पास करते हैं।’ ‘फेल कितने पर्सेंट में करते हो?’ ‘२९ % में।’ ‘नहीं! ३०% में पास होने वाला ७० परसेंट में फेल है। पर जब आप वेलुयेशन करते हो तो जो पाया वह देखते हो, जो खोया वो नहीं देखते।’ जीवन में अगर किसी का मूल्याँकन करना है, तो केवल इससे देखो कि उसने क्या पाया! क्या मिला इसे देखो, क्या किया इसे देखो! क्या नहीं किया इसे अनदेखा करो तो जीवन धन्य होगा।

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