क्या तीर्थक्षेत्रों में रीति-रिवाज से विवाह आयोजित करना उचित है?

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शंका

क्या तीर्थ क्षेत्र में पूरी विनय और मर्यादा के साथ पूरी रीति-रिवाज से विवाह करना उचित है?

समाधान

क्या तीर्थ क्षेत्रों में विधिवत् विवाह करना उचित है? मैं पूछता हूँ कि अनुचित क्यों है? यदि दिन में विवाह की विधि धर्मशालाओं में करते हो, भगवान के दरबार में तो नहीं करते हो? और इसके बाद दिन में करो, जैन नीति से करो, अभक्ष्य और मर्यादित पदार्थों से बचकर करो तो इसमें कोई दोष नहीं है। हो सकता है मेरी बात से कुछ लोग सहमत न हों, लेकिन मेरी तो ये विचारा धारा है कि आजकल लोग बाहर जा-जा कर होटलों में शादियाँ करते हैं जहाँ मद्य व मांस का प्रयोग होता है। वहाँ यन्त्र ले जाकर भगवान की पूजा और फेरे पड़ते हैं। ये महान अशुद्धि और पाप का कार्य होता है। विवाह जैसे मांगलिक कार्यों में ऐसा पाप का कार्य करना बेकार है। लाखों रुपये, कईयों के तो करोड़ों रुपये होटलों में चले जाते हैं। पहले विवाह-शादियों में लोग कम खर्च करते थे तो मियाँ-बीबी को पैसा मिलता था, धन मिलता था; अब तो कैटरिंग और होटल वालों के पास जाता है, डेकोरेटर्स के पास जाता है, उनके पास तो कुछ नहीं बचता; ये बर्बादी है। समाज के कुछ समर्थ लोग ये शुरुआत करें। हमारे तीर्थ क्षेत्रों में एक से एक रहने की सुविधाएँ हो गईं। वो अपने वैवाहिक कार्यक्रमों को तीर्थ क्षेत्रों में आकर शुरू कर दें और वहाँ रहने की और सारी व्यवस्थाएँ करें और जो फालतू खर्चा करते हैं उस खर्चे को बचाकर उस तीर्थ क्षेत्र में कोई स्थाई निर्माण कार्य करा दें, तो जिंदगी भर उनके बेटा और बेटी का नाम रहेगा और विवाह की यादें जीवन्त रहेंगी। पाप के कार्य से भी लोग बचेंगे और जितने भी लोग तुम्हारे विवाह में होंगे और विवाह में शामिल होने के उपरान्त शिखरजी जैसे क्षेत्रों में वन्दना का पुण्य लाभ पुण्य लाभ प्राप्त करेंगे। तुम्हारे लिए आनन्द आयेगा। 

कार्यक्रम ऐसा बनाओ कि तीर्थक्षेत्र में विवाह कराओ और विवाह के दूसरे दिन अपने बेटे और बेटियों का भगवान के चरणों में बैठाकर शांति विधान कराओ और अभिषेक कराओ। पुण्य से उनके जीवन की शुरुआत कराओ तो जीवन में बहुत मंगल होगा। पहल करने की जरूरत है। पर ये पहले कोई गरीब करेगा तो लोग सोचेंगे कि पैसा बचाने के लिए कर रहा है। ये पहल तब अनुकरणीय पहल होगी जब समाज के सम्भ्रान्त परिवारों के लोग ऐसी पहल करेंगे, ‘हम ये कार्यक्रम किसी रिसोर्ट में नहीं करेंगे, या हम ये कार्यक्रम किसी होटल में नहीं करेंगे, हम ये कार्यक्रम किसी पवित्र क्षेत्र में करेंगे।’ पहले जैन धर्मशालाओं में होती थी तो वहाँ तक तो दिक्कत नहीं थी क्योंकि वहाँ अशुद्ध पदार्थों का चलन ही नहीं था। आप जिन होटलों में करते हैं, ५ स्टार होटलों में, जहाँ आज आपके विवाह का कार्यक्रम है, ४-६ घंटे पहले किसी ने वहाँ मांस खाया। उस जगह मण्डप बनाकर के आप ये यन्त्र ले जाकर के भगवान का वहाँ पूजन, आराधन और रात्रि में कार्यक्रम करते हैं? वहाँ तो सब प्रकार की बुराईयाँ एक साथ पनपती हैं। खाना भी रात में और पीना भी रात में और पता नहीं क्या क्या? ये कुरीति है समाज को इस अपव्यय से बचाने के लिए और समाज को इस बुराई से बचाने के लिए आगे आने की जरूरत है। और सभी मिलजुल कर ये प्रयास करें तो समाज में बहुत बड़ा परिवर्तन होगा। 

मुझे तब बहुत खुशी होगी कि आने वाले दिनों में कोई विवाह का कार्यक्रम हो और वह मुझे मैसेज दे कि महाराज जी से प्रेरित होकर हमने ये कार्यक्रम किसी तीर्थक्षेत्र में किया है, सम्मेद शिखर जी में किया है, महावीर जी में किया है, गोमटेश जी में किया है। बहुत बहुत अनुकरणीय पहल होगी। यदि ये सूचना मुझको मिलेगी तो मैं शंका समाधान में उस व्यक्ति को आशीर्वाद दूँगा कि तुमने बहुत अच्छा कार्य किया है। समाज को इससे प्रेरणा लेनी चाहिए।

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