नरक की आयु बँधने के बाद केवलज्ञान होना सम्भव है?

150 150 admin
शंका

सप्तम नरक की आयु बँधने के बाद प्रायश्चित द्वारा केवलज्ञान होना कैसे सम्भव है?

समाधान

सप्तम नरक की आयु में बँधने के बाद केवलज्ञान नहीं होता, जो सप्तम नरक की आयु बाँधने योग्य होता, वो केवलज्ञान पा जाता है। मन चढ़ता-उतरता है। 

ये उत्तरपुराण का प्रकरण है, यह धर्मरुचि महाराज जी की बात है। बहुत उपयोगी कथा है। एक राजा ने अपने बेटे का अबोध अवस्था में राजतिलक किया और दीक्षा ले ली। दीक्षित होकर अपनी साधना में निबद्ध था, सड़क के किनारे एक पेड़ के नीचे बैठा था। इधर उसके मन्त्रियों ने उसके राज्य को हड़प लिया और उसके बेटे और रानी को राज्य से निर्वासित कर दिया, निकाल दिया। वो ध्यान में निमग्न थे, कुछ मनचले लोग निकले और बोले “ये यहाँ हाथ पर हाथ धर कर बैठ गया और वहाँ इसका सारा राज्य खो गया और आज इसकी रानी और बेटा दर-दर के भिखारी हो गए। इतना सुनना था कि इनके अन्दर का मोह जाग गया, आग बबूला हो गए। अपने चिन्तन में खो गए। बोले – “अभी एक-एक को देखता हूँ।” उसी समय राजा श्रेणिक उधर से गुजरे, जो भगवान महावीर के समवसरण की ओर जा रहे थे। राजा श्रेणिक ने मुनि महाराज की ऐसी क्रोधी दशा देखी तो चौंक गए- होठ फड़फड़ा रहे हैं, आँखें लाल हैं, पूरा शरीर तना हुआ है गुस्से से दाँत मीस रहे हैं- मुनि महाराज और इतना रौद्र रूप। उन्होंने समवसरण में जाते ही भगवान से पूछा कि “भगवान! रास्ते में मैं एक ऐसे मुनि महाराज के दर्शन करके आया हूँ। उनके परिणाम कैसे हैं और वे कहाँ जाएँगे?” भगवान ने कहा कि “श्रेणिक! जिस समय तुम वहाँ से गुजर रहे थे, उस समय वे तीव्र संरक्षणानन्द नामक रौद्र ध्यान में लीन थे और यदि अन्तर्मुहूर्त तक ऐसी दशा बनी रही तो सप्तम नरक के आयु के बन्ध योग्य हो जाएँगे।” बात आई गई हो गई। श्रेणिक लौटा तो वहाँ का माजरा ही कुछ और था। उनको केवलज्ञान हो गया। देवता उनका केवलज्ञान कल्याणक मना रहे थे। श्रेणिक को बड़ा आश्चर्य हुआ। भगवान तो कह रहे थे कि “अन्तर्मुहूर्त तक ऐसे ही टिके तो सप्तम नरक की आयु के बन्ध को जाएँगे”, यहाँ तो उल्टा केवलज्ञान हो गया। ये क्या मामला है? बात दरअसल यह थी कि जब उनको क्रोध आया, मोह जगा तो गुस्से में सब कुछ भूल गए कि “मैं मुनि महाराज हूँ।” अपने आप को राजा माना और राजा के नाम से अपनी तलवार कमर से निकालने के लिए हाथ बढ़ाया। उनकी एक आदत और थी कि जिस समय तलवार खींचते थे उस समय अपना मुकुट सँभालते थे- एक हाथ मुकुट पर और एक हाथ तलवार पर। जैसे ही उन्होंने ऐसा किया, तभी ख्याल आया कि “अरे! कौन राजा, किसका राज्य, किसका बेटा, किसकी पत्नी, कहाँ तलवार, कहाँ मुकुट? मैं किस जड़ राज्य के पीछे लग गया, धिक्कार है मुझे। जिसे मैनें छोड़ दिया, मुझे उसका मोह जग रहा है।” अपनी निंदा, आलोचना की।

Share

Leave a Reply