पिंजरे में बंद पक्षियों को छुड़ाना पाप है या पुण्य?

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शंका

जो लोग पक्षियों को कैद करके रखते हैं, उनसे उन्हें छुड़वाने में हमें पाप है या पुण्य है? क्योंकि अगर छुड़वाते हैं तो शायद वह दोबारा उन्हें कैद करें!

समाधान

पक्षी को कैद करके रखना महापाप है, अब छुड़वाने की जो बात है बड़ी गम्भीर है। आपने छुड़वा दिया और पक्षी उड़ने में असमर्थ हो गया तब? एक बार ऐसी घटना घटी, मुझे एक व्यक्ति ने बताया कि-” महाराज! मैंने दया करके पक्षी को छुड़ाया, वे पक्षी कई दिनों से कैद थे, पंख भी थोड़े-थोड़े काटे हुए थे, वे तोते थे, छुड़वाया तो वे उड़ नहीं पाए। पाँच तोतों में से तीन को बिल्ली खा गयी। वे पिंजरे में सुरक्षित थे, छुड़ा देने से वे असुरक्षित हो गए।

ये बड़ा गम्भीर और संवेदनशील मुद्दा है। अगर आप छुड़ाते हैं तो आप रक्षा के निमित्त बनते हैं। भाव अच्छा है, किन्तु अगर रक्षा के निमित्त छुड़ाने वाले भी हत्या में निमित्त बन जाए, तो यह एक गम्भीर मामला है। तो देख कर के, समझ कर के, विवेक पूर्वक बात करनी चाहिए। अगर पक्षी को आप बाहर निकालते हैं और वह उड़ने की स्थिति में है, तो से छुड़वा दीजिए। किन्तु यदि उड़ने लायक स्थिति नहीं है, तो उन्हें आप सम्भाल कर रख लीजिए। उनके रखरखाव की बात कीजिए। दया भी एक बहुत गम्भीर संवेदना का प्रतीक है।

मैं सागर में था, माँस निर्यात के विरुद्ध पूरे देश में एक बहुत बड़ा अभियान चल रहा था और उसकी शुरुआत सागर से हुई। हजारों लोग उसमें जुड़ें, एक युवक जो इस अभियान से प्रभावित था, वो एक पंसारी की दुकान में काम करता था। उसको रु १५०० तनख्वाह मिलती थी। उसने एक आदमी को मुर्गी लेकर जाता देखा, उससे रहा नहीं गया। उसने अपनी पूरी तनख्वाह, रु. १५०० देकर उससे ७-८ मुर्गियाँ खरीद लीं। अब ले तो लीं किन्तु रखे कहाँ! बड़ी समस्या, मुर्गियों को रखा कहाँ जाए? सुरक्षित रखना भी मुश्किल, बिल्ली से कुत्ते से बचाना। क्या करे? तो बड़ी दिक्कत आ गई कि यह ले लिया है परन्तु कहाँ रखें? मेरे पास आया, मैंने कहा शरणागत की रक्षा करना तो धर्म है। कसाई से तुम ने छुड़ाया और तुम्हारी भावना बड़ी सराहनीय कि १५०० रुपए की पगार मिली, पूरे १ महीने की तनखा, उसके लिए लगा दी। मेरे पास बिट्ठल भाई पटेल बैठे थे, बड़े अच्छे सामाजिक कार्यकर्ता, राजनेता थे, कवि भी थे! झूठ बोले कौवा काटे उन्हीं ने लिखा था। वे हमारे इस अभियान में साथ थे, आज दुनिया में नहीं है। उन्होंने कहा-“महाराज! अब यह दायित्त्व मुझे दिया जाए।” उनका एक बहुत बड़ा बगीचा था, बगीचे में उनको मुर्गियों को रखा गया और उनके लिए उनने पूरा नेट लगवाया। ताकि उस परिक्षेत्र में और कोई हमलावर प्राणी न घुस पाय। उन मुर्गियों ने अपनी आयु पूरी की। तो यह एक गम्भीर मामला है इसमें बहुत समझदारी का भाव रखना चाहिए।

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