क्या शोभायात्राओं में हाथी-घोड़े का प्रयोग हिंसा नहीं?

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शंका

यदि पशुओं को कष्ट देते हैं तो तिर्यंच गति का बन्ध होता है। पर बड़े-बड़े पंचकल्याणक प्रतिष्ठा में घोड़े और हाथी पर जो शोभायात्रा निकलती है उसमें उनको भी कष्ट होता है, तो उसमें क्या करना चाहिये?

समाधान

अगर कष्ट देते हो तो पाप है। पर हमने ऐसा भी देखा है कि पंचकल्याणक में हाथी भी बड़े मस्त होकर चलते हैं। कई जगह देखा मैंने! एक जगह गजरथ था, वहाँ पर हाथी का नाम था राजा- महाराजा! दो हाथी ऊँचे पूरे, पूर्णदन्ती; और जब रथ पर चलाया तो हाथी वाले ने बोला ‘यहाँ पर एक बैंड चाहिए।’ लोगों ने बैंड लगा दिया नॉर्मल वाला। वो बोला ‘यह नहीं चाहिए, इन को रिदम वाला बैंड चाहिए जो सेवादल का बैंड होता है’, रिदम वाला बैंड लगा दिया गया। उसके बाद जो हाथी उस रथ में चला, साढ़े चार किलोमीटर की यात्रा थी, ये भोपाल की घटना है, वह हाथी इतने झूमते हुए चला कि पूछो मत। उसकी आँखों से आँसू की धार मैंने देखी है, खुशी के आँसुओं की। वे दोनों हाथी चले, रथ पर सवार होकर। 

यह पालतू प्राणी है। भगवान ऋषभदेव ने इन प्राणियों के लालन-पालन की व्यवस्था, इनको पालतू बना करके, इनका उपयोग करने की व्यवस्था हम सबको दी है और पशुपालन को कृषि कर्म का एक रूप बनाते हुए आर्यकर्म निरूपित किया है। हाथी, घोड़ा, बैल आदि को अगर आप नहीं पालोगे तो काम नहीं चलेगा; और पालोगे तो इनका कुछ न कुछ उपयोग तो होगा, लेकिन अति भारारोपण नहीं करना। जैसे पिता बच्चे को अपने गोद में लेता है, तो गोद का बच्चा उसके लिए भार नहीं होता बल्कि वो उसके प्यार का आधार बनता है। अब २२ साल का बच्चा अपने ६० साल के बाप को कहे कि हम को गोद में लो तो ये गड़बड़ है। 

इसी तरह हर प्राणी की एक संभावित क्षमता होती है वजन उठाने की। उससे ज़्यादा अगर उन पर लादते हैं; और उनके ऊपर अंकुश लगाना, चाबुक मारना, नकेल कसना, लगाम खींचना जैसी चीजें ज़्यादा करते हैं तो वह हिंसा है, ऐसी हिंसा से बचना चाहिए।

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