क्या पूजा-अभिषेक के पूर्व मंदिर में स्नान करना आवश्यक है?

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शंका

क्या पूजा-अभिषेक के पूर्व मंदिर में स्नान करना आवश्यक है?

समाधान

शुद्धता की अलग-अलग परिपाटियाँ है। देवतार्चन के पूर्व अन्तः-बाह्य शुद्धि होनी चाहिए और उस शुध्दि के बिना आपकी पूजा-अर्चना संभव नहीं हो सकती। स्नान करना बाह्य शुध्दि है और अपने मन को दुर्विचारों से मुक्त करना अन्तरंग शुध्दि है। अगर ऐसा आप नहीं करते हैं तो आपकी शुद्धि नहीं है। इतना ही नहीं स्नान करने के साथ-साथ आपको अपने मन को भी शान्त करना है और शुद्ध वस्त्र पहन कर संयम के साथ भगवान की पूजा-अर्चना करनी है।

अब रहा सवाल घर से स्नान करके आएं तो मन्दिर में स्नान करना जरूरी है या नहीं? यह मन्दिर की व्यवस्थाओं पर निर्भर है। उत्तम तो यही है कि मन्दिर में ही स्नान करें क्योंकि शहरों में सड़कों की शुद्धता उतनी नहीं दिखती लेकिन यदि कदाचित स्नान नहीं कर सकते तो कम से कम हाथ-पांव तो धो लें। 

आगम में ५ प्रकार का स्नान बताया है- पादस्नान, जानुस्नान, कटिस्नान, ग्रीवास्नान और शिरा!

पादस्नान यानि पाँव धो लिया आपका एक स्नान हो गया। जानुस्नान यानि घुटनों तक धो लिया; कटिस्नान यानि कमर तक धो लिया है; ग्रीवास्नान यानि गर्दन तक पानी डाल लिया है; शिरास्नान यानि सिर पर पानी डाल लिया है। तो यदि आप वस्तुतः घर से नहा धोकर अच्छी तरह से आते है, तो मन्दिर में आने के बाद गीले कपड़े से अपने शरीर को पौंछ कर हाथ-पांव अच्छे तरीके से धो लें और शुद्ध वस्त्र पहन करके आप भगवान की पूजा-अर्चना करते हैं तो इसमेंं कोई दोष नहीं है। “भावस्य शुद्धिमधिकामधि गंतुकामः“, भावों की उत्कृष्ट शुद्धि को प्राप्त करने की इच्छा रखते हुए मैंने द्रव्य की शुद्धि को अच्छी तरीके से धारण किया।; “आलंबनानि विविधान्यवलम्ब्य वल्गन्” -विभिन्न प्रकार के आलम्बनों का अवलंब लेकर अष्ट द्रव्य आदि का, “भूतार्थयज्ञ-पुरुषस्य करोमि यज्ञम्” -सच्चे यज्ञपुरुष की मैं पूजा करता हूँ”। इसको समझ कर चलना चाहिए।

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