क्या मेरा विवाह नहीं होने में दोष मेरा है?

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शंका

जयपुर में सम्पन्न हुए युवक-युवती कार्यशाला से मेरा जीवन बदला है। मेरी माताजी मेरे विवाह हेतु प्रयासरत हैं, परन्तु तीन-चार जगह के लोगों ने बातचीत और देखने के बाद मना कर दिया है। मेरी माताजी इस बात का दोषारोपण मुझ पर और मेरे भाग्य पर करती हैं। ऐसे में हम क्या करें?

मेघा जैन , नोएडा

समाधान

अपना धैर्य न खोएँ। इसे अपने कर्म का उदय मान कर स्वीकार करें। यद्यपि माँ-बाप को इस तरह से दोषारोपण नहीं करना चाहिए। जब संयोग होना होगा तब होगा। अधीर होने से काम नहीं होगा। कारज धीरे होतु है, काहे होत अधीर; समय पाय तरुवर फलै, केतक सींचौ नीर, समय पर कार्य होगा।

अभागी है-यह सब कहना एकदम गैर-जिम्मेदाराना टिप्पणियाँ हैं। इस तरह की टिप्पणियाँ नहीं करनी चाहिए। माँ को तो बिल्कुल भी नहीं करनी चाहिए, खासकर ऐसी बच्ची के लिए जो डगमगाते हुए सही रास्ते पर आई। इस तरह की डाँट, फटकार या इस तरह की भर्त्सना उसे अपने कर्तव्य से विमुख भी कर सकती है। इसलिए मैं ऐसी माँओं से कहना चाहता हूँ कि बच्चा यदि गलती करे और गलती को सुधारने के लिए रास्ता बदल दे तो कभी भी उसको उसकी पुरानी गलती की दुहाई न दो, उत्साहित करो क्योंकि गिरने वाला ही सँभलता है, गिरता वही है जो चलता है, जो चल करके गिरता है गिर करके सँभलता है, हम उसे आगे बढ़ाने की कोशिश करें और वह दोबारा न गिरे ऐसी सावधानी रखने का प्रयास करें। यह प्रयास हमारा होना चाहिए।

आपके अन्दर वर्कशॉप (workshop/ कार्यशाला) का प्रभाव पड़ा, यही अच्छी बात है। आपके अन्दर ही नहीं आपके जैसी अनेक युवतियों के जीवन में बदलाव आया है। इस बदलाव को अपने जीवन की एक स्थायी निधि के रूप में अंकित करो और किसी भी हालत में अपने आप को बदलने की कोशिश मत करो। अपने मन को भटकने मत दो। आज नहीं तो कल अच्छा संयोग आएगा और उसका परिणाम भी अच्छा आएगा।

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