प्राचीन मंदिरों का जीर्णोद्धार करना भी महत्त्वपूर्ण है?

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शंका

धर्म प्रभावना के लिए नये मन्दिर और तीर्थ बन रहे हैं लेकिन प्राचीन मन्दिरों की उपेक्षा हो रही है जबकि शास्त्रों में लिखा है कि प्राचीन मन्दिरों का जीर्णोद्धार करना चाहिए। महाराज जी! धार के बाद “आऊँ क्षेत्र” इन्दौर से ८५ किलोमीटर दूर है हम आपसे उसके बारे में मार्गदर्शन चाहते हैं?

समाधान

जहाँ तक सवाल है नये और पुराने का, निश्चित रूप से नये के निर्माण के साथ पुराने का जीर्णोद्धार भी होना चाहिए। जब उसमें पुरानी जीवंश दिख रहा है उसे प्राथमिकता से ठीक बनाना चाहिए ताकि हमारी संस्कृति ठीक बनी रहे और त्रिलोकी नाथ की पूजा-आराधना ठीक ढंग से होती रहे। इसलिए उसका जीर्णोद्धार तो होना ही चाहिए और ऐसे जीर्णोद्धार का शास्त्रों में बहुत महत्त्व भी बताया है। 

रहा सवाल धार और आऊँ क्षेत्र का, तो मैं कभी दर्शन करने ही नहीं गया, आप मुझसे कहते हो कि मार्ग दर्शन करें। मैं तो इतना ही कहता हूँ कि धार के लोग अपनी धारा ठीक करें और भगवान के इस जिनालय के जीर्णोद्धार में जो कुछ भी अपना उत्कृष्ट कर सकें वो कर दें ताकि क्षेत्र विकसित हो। किसी व्यक्ति को अगर कहीं कोई जीर्णोद्धार की गुंजाईश नजर आती है, जीर्ण-शीर्ण स्थिति दिखती है, तो उसे यथासम्भव ठीक करना चाहिए। यदि समाज का मन्दिर जीर्ण-शीर्ण होगा तो समाज कभी मजबूत नहीं होगा। यदि समाज के मन्दिर मजबूत बनेंगे तो समाज कभी जीर्ण नहीं होगी। इस बात का सदैव ध्यान रखना चाहिए।

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