संघ के किसी एक मुनि या आर्यिका के प्रति झुकाव क्या दोषपूर्ण है?

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शंका

नगर में जब साधु संघ, खासकर आर्यिका संघ आता है, तो हमारा लगाव किसी एक गुरु के प्रति ज्यादा हो जाता है। हम अनचाहे में, न सोचते हुए भी कुछ पक्षपात कर लेते हैं। क्या इससे हमें दोष लगता है? यदि लगता है, तो किस प्रकार का दोष लगता है?

समाधान

राग व द्वेष मनुष्य के मन में भरे हैं। भक्ति में भी किसी एक के प्रति विशेष अनुराग हो ही जाता है। क्षयोपशम सम्यक् दर्शन की ये विशेषता है कि चौबीस तीर्थंकर सब समान हैं फिर भी कभी-कभी किसी-किसी का भगवान विशेष के प्रति ज्यादा राग हो जाता है। ये राग है, अपना-अपना राग है, होना नहीं चाहिए फिर भी होता है। क्योंकि ये हम लोगों के संस्कार हैं। 

साधु विशेष के प्रति राग होना मैं तब तक विघातक नहीं मानता जब तक उस राग के कारण किसी दूसरे साधु की उपेक्षा या अनादर न हो। यदि आप के इस राग के कारण दूसरे साधु की उपेक्षा या अनादर का भाव हो रहा है, तो आप मर्यादा से बाहर जा रहे हो। ऐसा जीवन में कभी नहीं होने देना चाहिए। वह पापास्रव का निमित्त बन जाता है। हर व्यक्ति का अलग-अलग निमित्त होता है। किस जीव का उद्धार किस जीव के निमित्त से हो? ये कहा नहीं जा सकता है। और कोई कहे कि इस व्यक्तिगत आकर्षण को न रखा जाये सब के प्रति समभाव रखा जाये तो मैं मानता हूँ कि ये प्रैक्टिकल नहीं है। जिसका जिसके साथ जुड़ाव-लगाव होता है, वहाँ स्वाभाविक आकर्षण उसकी तरफ होता है। लेकिन ये बात ध्यान में रखें कि ये आकर्षण किस के लिए? धर्म के लिए? उस धर्म को हम पूर्ण करें और मेरा धर्म क्या है। इसे मैं ध्यान रखूं तो जीवन में ऐसी गड़बड़ी कभी नहीं होगी। 

दूसरी बात- दूसरे की उपेक्षा या अनादर नहीं होना चाहिए। और एक महत्त्वपूर्ण बात- व्यक्ति से भी जुड़ो तो किस लिए जुड़ो? धर्म से जुड़ेंगे तो कल्याण होगा और व्यक्ति से जुड़ोगे तो संसार में फँसे रहोगे। चाहे वह साधु ही क्यों न हो? तो साधु को धर्म का पात्र मानकर धर्म के लिए जुड़ो और अपने धर्माचरण में उसे प्रभावित न होने दो तो तुम्हारा जुड़ाव सार्थक है अन्यथा वह भी मोह की एक परिणति मात्र बनकर रह जायेगा।

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