क्या संसार में प्रत्येक जीव किसी अन्य जीव का भोजन है?

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शंका

तत्वार्थ सूत्र का एक सूत्र है- “परस्परोपग्रहो जीवानाम!” और एक हमारा मूल मन्त्र है – “जियो और जीने दो!” एक वैज्ञानिक हुए हैं- डार्विन (Darwin), उन्होंने प्राकृतिकवाद का एक सिद्धान्त दिया- जीव जीवस्य भोजनम! हमारे कार्य क्षेत्र में कई लोग, जो जैन धर्मावलम्बी नहीं होते हैं, कुतर्क करते हैं कि- “जब जीव जीव का भोजन है, तो अगर कोई जीव किसी दूसरे जीव को खाता है, तो इसमें कौन सा बुरा है?”

समाधान

हाँ, यदि जीव जीव का भोजन है, तो वही जीव जो तुम्हारे अपने कुनबे के हैं, उन को भोजन अपना बनाकर बताओ। जब तुम “जीवो जीवस्य भोजनम” कह रहे हो, अपनी स्वाद लोलुपता के कारण दूसरें जीवों को खा रहे हो, उसको भोजन बना रहे हो, तो अपने कुनबे को भोजन बनाकर बताओ। यह कुतर्क है, जीव जीव का भोजन नहीं है, हमारा धर्म हमें यही कहता है कि हम जीवो को संरक्षण दें। जियो और जीने दो। 

यह इसका दुष्परिणाम है कि आज इको-बैलेंस बिगड़ गया है, प्राकृतिक असन्तुलन बढ़ गया है। पारिस्थितिकी का पूरा सम्बन्ध गड़बड़ हो गया और आज ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्या पैदा हो गयी है। यह किसके के कारण हुई? यह उन लोगों के कारण हुई है जो मनुष्य के रूप में जन्म लेने के बाद भी नर पिशाचों जैसा कृत्य करते हैं। उन्हें चाहिए कि वह मानवोचित कर्तव्यों का पालन करे, जो हमारी मूलभूत संस्कृति है। अपनी प्रकृति के अनुरूप जिएँ, इस तरह के कुतर्कों से कोई फायदा नहीं होगा। हम यदि प्रकृति का संरक्षण करना चाहते हैं तो जियो और जीने दो के संदेश को आत्मसात करने की आवश्यकता है।

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