क्या संयुक्त परिवारों के बिखराव का कारण शिक्षा है?

150 150 admin
शंका

लोग जब अनपढ़ थे, तो परिवार एक हुआ करता था। आज परिवार में पढ़े-लिखे लोग ज़्यादा हो गए, तो मैंने परिवारों को टूटते हुए देखा है, ऐसा क्यों? मार्गदर्शन करें।

समाधान

मैं समझता हूँ पहले के लोग पढ़े-लिखे भले कम थे, समझदार ज़्यादा थे। आज के लोग पढ़े-लिखे ज़्यादा हो गए हैं, पर समझदारी खत्म हो गई। इसके पीछे मुझे एक और कारण दिखता है कि पहले के लोगों की बुद्धि स्थूल थी, पर शुद्ध थी और आज के लोगों की बुद्धि सूक्ष्म तो हो गई है पर शुद्ध नहीं रही। वस्तुतः बढ़ता हुआ बुद्धिवाद, हमारी भावनाओं को लील रहा है। घर-परिवार बुद्धि से नहीं चलता, घर परिवार भावना से चलता है; और जब से बुद्धिवाद का विस्तार हुआ, भावनाओं को लोगों ने नकारना शुरू कर दिया, उसे तिलांजलि दे दी। जब भावनाएं मर जाती हैं, तो परिवार में बिखराव होना स्वाभाविक है, इसलिए हमें चाहिए कि बढ़ते हुए बुद्धिवाद को हम अपने ऊपर हावी न होने दें। बौद्धिकता बुरी चीज नहीं है लेकिन उसमें भावनाओं का पुट होना चाहिए। हम बुद्धिवाद में इस तरह से प्रभावित न हो कि बुद्धि की गर्मी में आपके हृदय की भावनायें ही सूख जाए और सारे रिश्तों में खटास आ जाए, ऐसा नहीं होना चाहिए। 

हालाँकि मेरे सम्पर्क में ऐसे बहुत से परिवार हैं, जो काफी पढ़े-लिखे हैं। पढ़ा लिखा होने के बाद भी वे आज बड़े अच्छे से रह रहे हैं, बहुत ही हिल-मिलकर के रह रहे हैं। इसलिए यह आरोप लगाना भी कि पढ़-लिख जाने से बिखराव आता है मैं पूरी तरह सहमत नहीं हूँ। मेरी दृष्टि में भावनाओं के आहत होने से ही घर-परिवार में बिखराव आता है और भावनाएँ तब आहत होती है जब शुष्क बुद्धिवाद तेजी से पनपने लगता है। हमें इससे बचना चाहिए और समाज को बचाना चाहिए।

Share

Leave a Reply